SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 751
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दिवंगत विद्वानों के जीवन परिचय साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ संगीत शिक्षा :- स्थानीय जैन तथा जैनेतर समाज में संगीतज्ञ विद्वान रहते थे स्वयं संगीत में रूचि होने से संगीतज्ञों की संगति में रहकर आपने अधिकांश रात्रि के समय ग्राम के बाहर अपने खेत की संगीत का अभ्यास किया। संगीत में राग- रागिनी, स्वर और ध्वनियों का 24 घण्टों के समय के अनुसार अभ्यास किया। इनके गुरु भी राग - रागिनी के भजन प्रतिदिन याद करने हेतु दिया करते थे। संगीत दिन की अपेक्षा रात्रि में कुटिया में अधिक अभ्यासार्थ चलता था । आपको 24 घण्टों में समयानुसार राग-रागिनी और ध्वनि के अनुसार स्वर लय के साथ गानों का अभ्यास अच्छा हो गया था इस तरह पक्के गाने भी गाने लगे । आपकी गान “समय लय" के अनुसार ध्वनि निकालने में हार्मोनियम, तबला, सारंगी वाले भी चकरा जाते थे । भाईजी महोदय ने अनेक जैन युवकों के लिए हार्मोनियम और तबला बजाने के साथ नृत्य कला की भी शिक्षा प्रदान की थी। इस तरह शाहपुर में संगीत (गाना, बजाना, नृत्य) की परम्परा चलती रही । 3. 4. सन् 1950 में आप जाबरा नगर (रतलाम म. प्र. ) पंचकल्याणक महोत्सव में श्री सरसेठ हुकमचंद जी की अध्यक्षता के अवसर पर संगीत प्रतियोगिता में सबसे प्रथम पारितोषिक के साथ संगीत रत्न की उपाधि प्राप्त करने का भाईजी ने सौभाग्य प्राप्त किया था भाई जी ने । 5. आपको हार्मोनियम और तबला बजाने की दक्षता के साथ ही 24 घण्टों के पृथक-पृथक चौबीस राग-रागिनी में पक्के गाना गाने का अनुभव था इसीलिए आप प्राकृत भाषा के णमोकार ( नमस्कार ) मंत्र को सौ से भी अधिक स्वर लहरों में गायन करते थे। किसी भी स्वर में गायन प्रारंभ करने पर मध्य णमोकार मंत्र को फिट करते जाते थे । यह कला उनके मानस पटल में विशेष रूप से विद्यमान थी । इस संगीत कला के विशेषज्ञ होने के कारण ग्रामों में, तहसीलों में, नगरों में विधान महोत्सव, विमान महोत्सव, जल यात्रा, पंचकल्याणक वेदी प्रतिष्ठा आदि महोत्सवों में जैन समाज द्वारा आमंत्रित किये जाते थे । आप संगीत का मधुर प्रोग्राम उपस्थित कर समाज और जैनेतर को प्रभावित करते थे सागर के मंदिरों में भी कार्यक्रम हुए उदाहरणार्थ एक गायन में णमोकार मंत्र को फिट करना : - हुमरी में णमोकार का समीकरण - Jain Education International तूं अनादि भूलो शिव गैलवा । टेक । णमो अरहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं, णमो उवज्झायाणं णमो लोए सव्वसाहूणं । जीव तूं अनादि - अंतरा - मोहमद वारपियो, स्वपद विसार दियो, - चत्तारिमंगलं, अरहंत मंगलं पर अपनायलियो, इन्द्रीसुख में रचो 646 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy