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आगम संबंधी लेख
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ लाभ से अपनी आत्मा को परमात्मा बनाने के पथ पर चलकर आदर्श प्रस्तुत किया है। मैंने भी आचार्य श्री के दर्शन से कुशल गृहस्थ श्रावक बनने की भावना भाई है क्योंकि -"भावना भवनाशिनी" होती है । अंत में आचार्य श्री के चरणों में कोटिशः नमोस्तु ज्ञापित कर अपना आदर भाव इन शब्दों में व्यक्त करता हूँ :
"ये ऐसे संत जिन्हें नमते, उर का क्रंदन खो जाता है। इनके चरणों में अंगारा, आते चंदन हो जाता है । पा दर्श आपके चेतनता इतनी जगती, चित चिंमय हो जाता है।
इनका दर्शन करते करते, खुद का दर्शन हो जाता है ॥" स्मृति ग्रन्थ “साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ के प्रकाशन अवसर पर स्व. गुरुवर्य पं. डॉ. दयाचंद्र जी साहित्याचार्य जी" को विनत विनयांजलि प्रेषित करता हूँ गुरुवर्य पू. वर्णीजी तथा सादर आचार्य श्री के अनन्य भक्त थे।
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