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________________ आगम संबंधी लेख साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ आचार्य श्री के साक्षात् दर्शन में लोक कल्याण भावना संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी महाराज के साक्षात् दर्शन में आत्म हितैषी लोक कल्याण की महान् भावना छिपी है। रत्नत्रय से उनका महान् जीवन निर्मित है। उनके साक्षात् दर्शन से मन में अपार शांति का संचार होने लगता है। भावों की निर्मल सरिता प्रवाहित होने लगती है। जो श्रद्धापूर्वक दर्शन कर उसमें अवगाहन करता है। उसे अनर्घ पद पर जाने की प्रेरणा मिलती है आत्मा को परमात्मा बनने की प्रेरणा मिलती है और प्रेरणा मिलती है अपने अंतस के अज्ञान और कल्मष को प्रक्षालन करने की तथा 'दर्शनेन जिनेन्द्राणां' साधूनां वन्दनेन, च न तिष्ठति चिरं पापं छिद्र हस्ते “यथोदकम्" की प्रेरणा का संचार होने लगता है तथा जीवन में विनयभाव धारण करने की प्रेरणा मिलती है। उनके दर्शन से जीव दया तथा जीव रक्षा के भाव प्रकट होते हैं। तथा परहित सरस धर्म नहीं भाई' पर 'पीडासम नहीं अधिकाई' के भाव जागृत हो जाते हैं। संसार शरीर और भोगों से छुटकारा पाने का मार्ग प्रशस्त होने लगता है। उनके साक्षात् दर्शन से हमें अपने अह्म को सांसारिक मान बड़ाई को, क्षल को, छद्म को एवं मायाचार को दूर करने की प्रेरणा मिलती है। उनके दर्शन में जैनशासन की साक्षात् अनुभूति छिपी है, उनका व्यक्तित्व "धम्मोदयाविशुद्धो" तथा “जीवानां" "रक्खणरो धम्मो की लोक कल्याणकारी भावनाओं से ओतप्रोत है। संघ सहित उनके दर्शन से साक्षात् समवशरण का दृश्य हमारे मानस पटल पर अंकित होकर मन की सुषुप्त भावनाओं को झंकृत कर देता है। जिन शासन की प्रभावना के वे पंचमकाल में भी चतुर्थकाल के साक्षात् प्रचारक है। आत्मान्वेषी आदर्श साधक के साथ उनके दर्शन में आत्ममूल्यांकन के महनीय भाव समाहित है। उनके दर्शन से आत्मशांति, आत्माराधना के गुण प्रकट करने की साक्षात् प्रेरणा मिलती है । वे महान् कवि, दार्शनिक, सफल प्रवाचक तथा जिनवाणी माँ के वरद पुत्र होने की जीवंत क्षमता रखते है। उनके दर्शन से साक्षात् तीर्थदर्शन का लाभ प्राप्त होता है । “कालेन फलते तीर्थं सद्य: साधु समागम:' की उक्ति सर्वोदयतीर्थ की भावना उनके साक्षात् दर्शन से बलवती हो जाती है । पद्मनन्दी आचार्य कहते है कि :- . "तत्प्रति प्रीति चित्तेन, येन वार्ताति संश्रुत: निश्चितं सः भवेद् भव्यो, भावी कल्याण भोजनम्" हमें भी मन वचन काय की शुद्धिपूर्वक आदर्श निस्पृही युग संत के साक्षात् दर्शन से पुण्यकर्म का संचय कर अपना जीवन शांतमय व सरल बनाना चाहिए । शाकाहार तथा सदाचार का पालन करना चाहिए । संतों का जीवन तो नारियल के समान होता है । तप की कठोरता पूर्वक साधना से आत्मिक उपलब्धि प्राप्त होती है । उनके चरण स्पर्श एवं दर्शन से अपना आचरण पवित्र बनाना चाहिए केवल भावावेशी देखा-देखी जयकारों की भावना हमारे आचरण में दिखाई देना चाहिए । उनके दर्शन से एवं चरण स्पर्श से हमें अपना आचरण आदर्श बनाना चाहिए। ___ अद्यावधि आचार्य श्री द्वारा दीक्षित जितने भी श्रमण संत है, सभी बाल ब्रह्मचारी है । यह सब उनके साक्षात् दर्शन का ही लाभ है । यौवन की दहलीज पर चढ़ने वालों ने इस महासंत के साक्षात् दर्शन -618 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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