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आगम संबंधी लेख
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ सिक्के के दो पहलू होने से सुख-दुख में दोनों का साथ साथ होना जरूरी है। एक दूसरे के सुख-दुख में दोनों बराबरी से शरीक होवें। अहं भाव को तिरोहित करें। कर्तृत्यवाद की भी कोई भी जगह न हो क्योंकि इसी से तू-तू, मैं-मैं शुरू होती है। यही मिथ्या है, यही पाप है, अधर्म है। जहां ये नहीं, वहां सम्यक है, पुण्य है, शांति है, धर्म है। धर्म-अधर्म की परिभाषा घर से ही शुरू होती है। सुख शांति अगर घर में है और सब एक दूसरे का सम्मान करते हैं, उनकी भावनाओं की इज्जत करते हैं। सब एक दूसरे के प्रति जागरूक हैं तो निश्चित ही उस घर में धर्म निवास करता है और जिस घर में कलह, अशांति है, उस घर में अधर्म का निवास है। धर्म घर से शुरू होता है, मंदिर बाद में । तुलसीदास ने कहा भी है -
जहां सुमति वहां संपति नाना, जहां कुमति वहां विपति प्रधाना॥ ये कहानी पत्नि की समझ और सूझबूझ दर्शाती है।
मैं एक छोटी कहानी बताता हूँ। कैसे पत्नि अपने व्यवहार से अपने पति को गुस्सा आने ही नहीं देती थी। ऐसा कोई भी मौका वह अपने पति को नहीं देती थी। एक बार पति खेत जोत रहा था। पत्नि को 12 बजे उसे रोटी देने जाना था। पति ने सोचा आज तो हम पत्नि को गुस्सा दिलायें और फिर अपने हाथ सेकेंगे। उसने हल में एक बैल को उल्टा जोता और दूसरे को सीधा । पत्नि आती है रोटी लेकर । वह अपने पति की बात समझ गई कि आज कुछ गड़बड़ होने वाला है, अत: उसने रोटी रखी और बोली - आप खा लो रोटी, मुझे उससे कोई मतलब नहीं है कि आप बैल को उल्टा जोतो या सीधा । अब पति के गुस्सा का निमित्त वह बनी ही नहीं। इस प्रकार हम गुस्से होने के निमित्त को टाल सकते हैं। इसी में सुख-शांति होगी।
__ ये दूसरी कहानी पति की सूझबूझ दर्शाती है । एक पंडित जी थे, बहुत गरीब, पर संतोषी । आज खाने को है तो ठीक है, नहीं तो फांके मस्ती में रहते थे। जब दो दिन हो गये चूल्हा जला ही नहीं तो पंडिताईन से रहा नहीं गया, और पंडित जी को दक्षिणा मांगने भेजा। पंडित जी गये और एक किसान के खेत में गन्ने लगे थे। उसके पास पहुंच गये। किसान ने 6-7 गन्ने पंडित जी को दे दिये। पंडित जी गन्ने लेकर घर आ रहे थे तो रास्ते में बालक मिल गये और पंडित जी से गन्ने मांग लिये। सिर्फ एक गन्ना ही पंडित जी के पास रह गया। वह लेकर घर आये तो पंडिताईन का दिमाग सातवें आसमान पर था। उसने पंडित जी से वही गन्ना छुड़ाया और पंडित जी को दे मारा । गन्ने के दो टुकड़े हो गये तो पंडित जी बोले - अहोभाग्य, तूने कितना अच्छा किया। एक टुकड़ा तुम खाओ, एक मैं । कहने का मतलब है कि क्रोध जहर तो एक को पीना ही पड़ेगा। तभी कलह को टाला जा सकता है। तभी कलह को टाला जा सकता है । यह परिणामों की सरलता है। आप जितने सरल होंगे, उतने आप धर्म के निकट होंगे।
सरलता मन का सीधापन, विचारों में सीधापन मन और विचारों में एकरूपता, आत्मा के परिणामों में सरलता आत्म उन्नति में सहायक, संसार सागर तरने, का सीधा उपाय ।
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