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आगम संबंधी लेख
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ मनुष्य में सर्व सामर्थ
पं. अमरचंद जैन शास्त्री
प्रतिष्ठाचार्य, शाहपुर चारों गतियों में सर्व श्रेष्ठ प्राणी, सर्व सामर्थ प्राणी मनुष्य ही है । इस पर्याय की उत्तम पात्रता - इस पर्याय में आने वालों को अग्निकाय, वायुकाय को छोड़कर 22 आगति है। सभी स्थानों से आता है । किन्तु जाने के लिए कुल 24 स्थान, 1 मोक्ष स्थान 25 गति स्थान है । यह मनुष्य संसार भवों की वृद्धि कर सकता
और संसार भवों का अंत भी कर सकता है। यह पात्रता मनुष्य में ही है । मोक्ष जाने का दरवाजा इसी पर्याय में ही है। देव गति की उत्कृष्ट आयु 33 सागर की पाने वाला तथा 33 सागर सातवें नरक में जाने वाला पात्र मनुष्य ही है। मनुष्य, तिर्यंच गति का उत्कृष्ट वंधक भी मनुष्य ही है।
आठ कर्मों की उत्कृष्ट स्थिति का बंध भी इसी पर्याय में है। जैसे दर्शन मोह की 70 कोड़ा कोड़ी बंध का कारण आचार्य उमास्वामी, ने लिखा है - "केवलि श्रुत संघ धर्म देवावर्णवादो दर्शनमोहस्य" यह अवर्णवाद स्वर्गों में नहीं है। कारण देवों के मंद कषाय रहती है। नरक गति में तीव्र कषाय में लड़ते रहने से अवर्णवाद करने का समय नहीं है । तिर्यंच गति में अवर्णवाद की पात्रता नहीं, सिर्फ मनुष्य पर्याय में ही पाँचों अवर्णवाद करने की पात्रता है। अत: उत्कृष्ट बन्ध प्रारंभ कर्ता मनुष्य ही है। वैसे चारों गति में दर्शन मोह मिथ्यात्व बंध है। क्षायिक सम्यक्त्व प्राप्त करने का अधिकार मनुष्य को ही है। इसलिए मोक्ष जाने का भी पात्र मनुष्य पर्याय है। 1. यह नर भव की महानता है । सार्थकता है। 2. हमारे पिता जी एक गीत सुनाते थे (सम्यक्त्व महिमा) धिक जीवन सम्यक्त्व बिना - टेक - दान शीलव्रत तप श्रुत पूजा, आतम हित नहिं एक गिना । घिक
जैसे भूप बिना सब सेना, नींव विना ज्यों मंदिर चुनना ॥
जैसे बिना एक के बिन्दु, त्यों सम्यक्त्व विन सर्व गिना ॥३॥ 1. पर को अपना मानना ही मिथ्यात्व है और पर को पर मानना ही सम्यक्त्व है। 2. (से और मैं शब्द में अंतर) संसार से डरना सम्यक्त्व है। और संसार में डरना मिथ्यात्व है। सातभयों से प्रत्येक प्राणी डरता है - जिसमें मरण भय प्रधान है। बहत जन प्रश्न करते हैं कि मिथ्यात्व किसे कहते है। उसका सरल उत्तर - सभी यह जानते है कि धर्म से सुख मिलता है और पापों से दुख मिलता है। इतना जानता हुआ भी प्राणी न धर्म ग्रहण करता है। और न पापों को छोड़ता है यही मिथ्यात्व है । एक बार शिष्य ने कुलभद्राचार्य से प्रश्न किया कि संसार में वृक्षादि के मूल बीज होते हैं । तो यह प्राणी संसार में नये - नये शरीर प्राप्त करता है। तो इसका भी बीज क्या है । आचार्य उत्तर देते है -
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