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आगम संबंधी लेख
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ है। वायु प्रदूषण का एक कारण धूम्रपान भी है इससे फेंफड़े खराब हो जाते है। धूम्रपान न करने वाले के शरीर पर भी धुएँ का अत्यंत हानिकारक प्रभाव पड़ता है। तम्बाखू में मिले निकोटिन, कोल्टा, आर्सेनिक तथा कार्बनमोनो आक्साइड आदि विष का काम करते है।
वायु प्रदूषण से ही सम्बधित है ध्वनि प्रदूषण ट्रेन बस, जहाज, लाउडस्पीकर, जुलूस, वाद्ययंत्रों से उठने वाली तरंगें अनिद्रा, चिड़चिड़ापन, नैराश्य आदि मानसिक रोगों की जननी हैं। कर्ण के विभिन्न रोग, श्वसन प्रणाली जनन क्षमता हास व मस्तिष्क के विभिन्न रोग इससे पैदा होते हैं। वाहनादि का कम से कम प्रयोग तथा कम बोलने, आवश्यकताएँ कम करने से इस प्रदूषण से बहुत कुछ बचा जा सकता है। वायुकायिक जीवों की हिंसा से विरति भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
__ वनस्पति प्रदूषण - पेड़-पौधे हमारे जीवन दाता हैं, वे विष पीकर अमृत देते हैं । सांसारिक प्राणवायु का बहु भाग वनस्पति से पैदा होता है। वन्य जीवों की रक्षा, बाढ़ व भूस्खलन का रोकना, वर्षा का नियंत्रण तथा हमारे स्वास्थ्य का संरक्षण वनस्पति पर ही निर्भर है। आज वनस्पति की हिंसा को कोई हिंसा मानता ही नहीं। वनों को काटे जाने से प्रकृति का संतुलन बिगड़ रहा है, रेगिस्तान और समुद्र बढ़ रहा है। यदि हम वनस्पति के विनाश से विरत हो तथा उसका कम से कम उपयोग करें तो इस असंतुलन से बचा जा सकता है। खोजों में पाया गया है कि एक आदमी को प्रतिदिन कम कम से 16 किलो आक्सीजन चाहिए। इतनी आक्सीजन के लिए 50 वर्ष की आयु और 50 टन वाले 5-6 वृक्ष चाहिए। देखा जाये तो 5-6 वृक्षों को काटना एक आदमी को प्राण वायु से वंचित कर देना है।
इस प्रकार स्थावर हिंसा से विरत होने पर ही पर्यावरण का संरक्षण संभव है। दो, तीन, चार और पाँच इन्द्रियों वाले सूक्ष्म जीवों के विनाश से विरत होने पर शराब, मांसाहार, पशु सम्पदा का विनाश आदि से बचा जा सकेगा। हिंसा से विरत होने पर मन पवित्र होगा तब झूठ चोरी, कुशील परिग्रह आदि पापों से विरति होगी और सच्चे अर्थों में मनुष्य मनुष्य होगा। आइये संकल्प करें कि हम हिंसा से विरत होंगे और पर्यावरण का संरक्षण करेंगे।
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