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आगम संबंधी लेख
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ जीव में अपने जाने हुए पदार्थ में श्रद्धान उत्पन्न नहीं होता, वहाँ जो ज्ञान होता है, वह “अज्ञान" कहलाता है, क्योंकि उसमें ज्ञान का फल नहीं पाया जाता।
आचार्यवट्ट केर कृत शौरसेनी प्राकृत भाषा के श्रमणाचार विषयक प्रमुख प्राचीन ग्रंथ "मूलाचार" में ज्ञान का स्वरूप तथा इसके उद्देश्यों के विषय में सार रूप बड़े प्रभावशाली रूप में कहा है कि -
जेण तच्चं विबुज्झेज्ज, जेण चित्तं णिरूज्झदि । जेण अत्ता विसुज्झेज्ज तं णाणं जिणसासणे ॥ 5/70 जेण रागा विरज्जेज्ज जेण सेएसु रज्जदि ।
जेण मित्ती पभावेज्ज तं णाणं जिणसासणे ॥ 7/11 अर्थात् जिससे वस्तु का यथार्थ स्वरूप जाना जाये, जिससे मन की चंचलता रूक जाये, जिससे आत्मा विशुद्ध हो, जिससे राग के प्रति विरक्ति हो, कल्याणमार्ग में अनुराग हो और सब प्राणियों में मैत्री भाव हो उसे ही जिनशासन में "ज्ञान" कहा है।
इसीलिए मिथ्यात्व के सहचारी ज्ञान को मिथ्या या अज्ञान कहा जाता है। ज्ञान के भेद
सिद्धांत ग्रंथों में ज्ञान के मति, श्रुत, अवधि, मन: पर्यय और केवल इन पाँच भेदों का जो विवेचन मिलता है, वह ज्ञानावरण के क्षयोपशम या क्षय से प्रकट होने वाली ज्ञान की अवस्थाओं का विवेचन है । ज्ञानावरण कर्म का कार्य आत्मा के इस "ज्ञान" गुण को रोकना है और इसी ज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम के तारतम्य से पूर्वोक्त पाँच में से आरंभिक चार ज्ञान प्रकट होते हैं। ज्ञानावरण कर्म का सम्पूर्णतया क्षय होने पर निरावरण "केवल ज्ञान" प्रकट होता है। इन्हीं पाँच ज्ञानों का प्रत्यक्ष और परोक्ष इन दो प्रमाणों के रूप में विभाजन किया गया है। वस्तुत: जिन तत्त्वों का श्रद्धान और ज्ञान करके मोक्षमार्ग में जुटा जा सकता है, उन तत्त्वों का अधिगम ज्ञान से ही तो सम्भव है। यही ज्ञान प्रमाण और नय के रूप में अधिगम के उपायों को दो रूप में विभाजित कर देता है । इसलिए तत्त्वार्थ सूत्रकार ने “प्रमाणनयै-रधिगमः" सूत्र कहा।
तत्त्वार्थसूत्र में आचार्य उमास्वामी (ई.वी.प्रथमशती) ने प्रमाण के अंतर्गत ज्ञान की चर्चा करते हुए तीन सूत्र प्रस्तुत किये - तत्प्रमाणे, आद्ये परोक्षं, प्रत्यक्षमन्यत् - अर्थात् पूर्वोक्त पाँच प्रकार का ज्ञान दो प्रमाण रूप है । प्रथम दो ज्ञान - मतिज्ञान और श्रुतज्ञान परोक्षप्रमाण हैं, शेष तीन ज्ञान प्रत्यक्ष प्रमाण है । जो ज्ञान इन्द्रिय और मन की सहायता के बिना केवल आत्मा की योग्यता से उत्पन्न होता है। वह प्रत्यक्ष कहलाता है, और जो ज्ञान इन्द्रिय और मन की सहायता से उत्पन्न होता है वह परोक्ष है।
___ ज्ञान के इन पाँच भेदों में से मतिज्ञान और श्रुतज्ञान परोक्ष है, क्योंकि ये इन्द्रिय और मन के द्वारा होते है। शेष तीन ज्ञान अर्थात् अवधि, मन: पर्यय और केवलज्ञान ये तीन ज्ञान प्रत्यक्ष हैं । किन्तु इनमें भी
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