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शुभाशीष/श्रद्धांजलि
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ
शुभाशीष सहज, सरल स्वभावी पंडित दयाचंद्र जी साहित्याचार्य जैन जगत् के एक श्रेष्ठतम विद्वान रहे है । देव
| शास्त्र और गुरू के अनन्य भक्त पंडित जी ने जैन संस्कृति की अनुपम सेवा की हैं। अपने प्रभावक प्रवचनों/शोधालेखों से उन्होंने जैन संस्कृति को पल्लवित किया है। वर्णी भवन मोराजी के प्राचार्य पद पर रहते हुए उन्होने अनेक विद्वानों को | तैयार किया है । वयोवृद्ध हो जाने के बाद भी वे बड़े दृढ़ अध्यवसायी रहे हैं । उनके | इस अवदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता।
पंडित जी के स्मरण में समाज स्मृति ग्रंथ का प्रकाशन करा रही है, यह एक
श्लाघनीय प्रयास है । इस प्रयास से समाज को पंडित जी के योगदानों का सही मूल्यांकन करने का अवसर प्राप्त होगा।
- मुनि प्रमाण सागर
शुभाशीष अध्यात्म जगत में विश्वगुरूता को प्राप्त श्रमण संस्कृति में अनेक तत्व मनीषी आचार्य, उपाध्याय, साधु भगवन्त हुए हैं। जिन्होंने वाग्वादिनी के कोश को वृद्धिंगत किया। आत्मान्वेषी, सम्यक्त्व प्रतिपादक
व परम समरसी भाव में लवलीन वीतराग मार्ग के पथिक श्रमणों के द्वारा जिनशासन अनादि से जयवन्त चला आ रहा है।
समयसार भूत आत्माओं के उपासकों द्वारा भी समय समय पर जिनशासन की प्रभावना की गई है। जिनभारती के भक्त विद्वानों ने अथक परिश्रम कर नमोस्तु | शासन को अपनी ज्ञान गरिमा से पुष्पित व फलवित किया है उनमें से साहित्याचार्य | पंडित दयाचंद्र शास्त्री भी एक है। भद्र परिणामी, साधुभक्त, जिन प्रवचन प्रेमी थे।
पंडित जी सन् 2000 के सागर चातुर्मास में आप नियमित श्रोता के रूप में प्रवचन सभा में बैठते थे। तत्व चर्चा एवं गोष्ठियों में अच्छी रूचि रखते थे। ऐसे सरल स्वभावी विद्वान की स्मृति में "साहित्य मनीषी की कीर्ति-स्मृतियाँ" अभिनंदन ग्रंथ के रूप में श्री गणेश दि. जैन संस्कृत महाविद्यालय, सागर (म.प्र.) प्रकाशित कर रहा है । श्रेयोकार्य हेतु शुभाशीष । इति शुभम् भूयात्
मुनि विशुद्ध सागर
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