________________
शुभाशीष/श्रद्धांजलि
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ
आशीर्वाद
पंडित दयाचंद्र जी साहित्याचार्य का जीवन सरल और श्रमजीवी रहा है । गणेश दिगम्बर जैन संस्कृत
महाविद्यालय (सागर) के प्राचार्य पद से सेवा निवृत्त होने के बाबजूद भी आपने विद्यालय और विद्यार्थियों के हित में हमेशा ध्यान दिया। देव, शास्त्र, गुरू के प्रति अनन्य श्रद्धा आपका विशिष्ट गुण था। जिनवाणी की सेवा और श्रावक योग्य दिनचर्या बनाकर आपने अपना जीवन बड़ा ही सहज और सात्विक बनाया। विद्वता के रूप में तो मैं बाद में परिचित हुआ, बचपन में उनका स्नेह भाव बहुत ही अच्छा लगता था । चूंकि गृहस्थावस्था में मेरी मामी के वह पिता श्री थे अत: जब तक
उनके पास जाने का अवसर मिलता था। जब वह कभी धार्मिक अध्ययन करने की प्रेरणा भी देते थे। उनकी सब से छोटी पुत्री किरण जी ने अपनी मां के निधन पर पुत्र जैसा भाव मन में जगाकर पिता श्री को सहारा देने का संकल्प किया । एतदर्थ जिनवाणी का अध्ययन अध्यापन करती हुई एम.ए. की डिग्री लेकर धर्म के क्षेत्र में सिद्धांत शास्त्री की परीक्षा भी पास की। जीवन के अखिरी क्षणों में भी ब्र. किरण जी ने नमोकार मंत्र से सम्बोधन देकर अपने जीवन के श्रेष्ठ पुत्री-कर्त्तव्य का निर्वहन किया। जैन समाज सागर ने सन् 2001 में हम तीन महाराजों की उपस्थिति में प्रवचन- सभा में जब पण्डित जी का जो सम्मान किया था, तब विनम्रता भरे उद्गार पण्डित जी ने जो समाज और संस्था के प्रति व्यक्त किये थे वह आज भी मेरी स्मृति में है। पण्डित जी निकट भवों में शीघ्रातिशीघ्र रत्नत्रय की परिपूर्णता प्राप्त कर मुक्ति सुख प्राप्त करें ऐसी शुभकामना है। ___'साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ ग्रन्थ प्रकाशित करने वाले सभी सुधी विद्वान एवं श्रावक बंधुओं को शुभाशीष ।
मुनि समता सागर
15
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org