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शुभाशीष / श्रद्धांजलि
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ
जीर्णशीर्णकाय में व्यक्तित्व का खजाना
एक जीर्णशीर्णकाय में व्यक्तित्व का खजाना जो आज समाज और जिन शासन के लिए अद्भुत उदाहरण देकर अस्ताचल की ओर चला गया। वे व्यक्तित्व पंडित श्री दयाचंद जी शास्त्री थे । जिनके जीवन का मुख्य ध्येय ज्ञान धन रहा, जड़ धन रूपया, पैसों का मोह नहीं रहा । श्री गणेश प्रसाद वर्णी जी की बगिया में बहुत सारे ज्ञान पुष्प खिले, उन पुष्पों में से एक पुष्प पंडित जी भी थे। मैंने जब उन्हें देखा और क्षुल्लक श्री गणेश प्रसाद जी वर्णी जी के बारे में पढ़ा था कि वे बहुत भोले सहज, माया प्रवंचना से परे थे । वैसा ही व्यक्तित्व हमने पंडित जी में देखा। हमने जब भी देखा स्वाध्याय ध्यान आदि को करते और कराने में ही लगा देखा । इसलिए उन्हें इसी शांत परिणामी स्वभाव के कारण जीवन के अंत समय तक उसका प्रभाव एवं संस्कार उनमें देखा गया।
जन्म की उत्कृष्टता यदि है तो मरण के समय सजग और सावधान रहने में है । आधुनिक भौतिक साधनों अपने आपकी श्रेष्ठता को देखने वाला नियम से अज्ञानी की कोटि में आता है, लेकिन सही ज्ञानी जीव बाहरी भौतिक साधनों से नहीं, आत्मिक सुख साधन ज्ञान की आराधना उपासना है। ज्ञान को चरित्र की कसोटी पर कसकर उसकी ओर निखारता है। पंडित जी ने अपने जीवन काल में ज्ञान की आराधना उपासना की साधना श्रावक के व्रत रूपी चारित्र की कसौटी पर कसकर अपने आपको सुन्दर बनाने का कार्य किया जो विद्वत समाज के लिए अनुपम उदाहरण बनकर गये है। विद्वान यदि व्रती बनता है उसके चारित्र की महिमा को अच्छे से बखान कर सकता है इसलिए आज विद्वत वर्ग को प्रेरणा लेनी चाहिए और ज्ञान के साथ चारित्र भी लेकर जिन धर्म की प्रभावना करनी चाहिए ।
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पंडित जी को मैंने इतना वृद्धावस्था में देखा वे सदा सम्यग्ज्ञान को अपने उपयोग का विषय बनायें रखते थे । प्रात: काल यदि घूमने जाते तो रास्ते में स्त्रोत पाठ करते थे । मेरा मोराजी में उनके मरण के 6 माह पूर्व जब वर्णी भवन मोराजी विद्यालय का शताब्दी समारोह का कार्यक्रम हुआ था उस समय प्रवास था। एक दिन पंडित
वर्णी भवन की परिक्रमा प्रातः काल घूमने की दृष्टि से लगा रहे थे और साथ में पाठ करते जा रहे थे। हमने सहज पूछा क्या हो रहा है पंडित जी ? उन्होंने दोनों हाथ जोड़कर नमोस्तु कर कहा - महाराज शरीर जाम न हो जाये इसलिए थोड़ा चलाता रहता हूँ, नहीं तो यह अंत समय में परेशान करेगा। हमने फिर पूँछा कुछ पढ़ भी तो रहे हो पंडित जी, पंडित जी बोले - महाराज शुभोपयोग बना रहे इसलिए संस्कृत स्त्रोतों का पाठ भी करता रहता हूँ,
हम आश्चर्य भरी दृष्टि में कहा- इतनी उम्र में भी आपको स्तोत्र पाठ आदि सब याद है पंडित जी ? पंडित जी बोले- महाराज ज्ञान ही एक ऐसा जो एक बार अच्छे से ग्रहण किया जाये तो अंत समय तक साथ देता है। गुरूजनों का आशीर्वाद और कृपा है हमें आज भी सब याद है ।
इस प्रसंग से हमने पंडित जी के जीवन से यही शिक्षा ली कि ज्ञान आराधना में हमें सदा तत्पर रहना चाहिए। उसे मात्र शब्दों तक नहीं अंत रंग जीवन में उतारना चाहिये । इतनी उम्र में भी इतनी स्मरण शक्ति यह सब पूर्व के संस्कार का परिणाम है।
ऐसे व्यक्तित्व और सरस्वती के आराधक ज्ञान चिन्तन के धनी पंडित जी का जीवन सदा शुभोपयोगमय
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