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कृतित्व/हिन्दी
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ अधुना जैन समाज अधिकांश व्यापारी वर्ग है । क्षत्रिय इन दिनों जैन समाज में नगण्य है। ब्रह्म लीन ब्राह्मण तो इने गिने ही होते है । जैन तीर्थकर सब क्षत्रिय ही हुये हैं। मोक्षगामी वैश्य पुत्र का उदाहरण एक जंबूस्वामी का सारे आगम में अकेला ही प्रगटता है। तो बाइबिल का कथन सत्य होना सरलता से समझ में आता है एवं इस्लाम में सूद-खोरी को त्याग का उपदेश भी भगवान उमा स्वामी के वाक्यों का अनुयायी जान पड़ता है। तब यह जैन समाज किस बल बूते पर स्वर्ग प्राप्ति का टिकट अपने सदस्यों को दे सकने की दम भरेगा हमारे सचमुच गम्भीरता से विचरने का स्थान है ।यदि पाँच पापों को त्याग का उपदेश जैन आगम और पुराण सिद्धांत का न होता तो अवश्य ही जेलें वणिकों से भरी मिलतीं। अभी तक यह अभिमान व्यापारी वर्ग को रहा है। कि व्यापारी जेल यातना का अधिकारी नहीं बन सकता। किन्तु सच पूछिए तो जैन धर्म रूपी पतवार का सहारा पाकर ही उनकी नैया संकट समुद्र में डूबने से बची चली आ रही है , जहाँ कि परिग्रह त्याग एवं परिग्रह परिमाण की प्रेरणा बलवती है। आचार्यवर्य गुणभद्र स्वामी का कथन है :
"शुद्धैर्धनै विवर्धन्ते सतामपि न संपदः ।
नहि स्वच्छाम्बुभिः पूर्णा: कदाचिदपि सिन्धवः ॥" सिन्धु में अपार जलराशि है तथापि वह मधुर स्वादिष्ट नहीं. अपितु क्षार और अपेय है । मीठे पानी के जलाशय तो छोटे ही प्राय: होते हैं। नदियों में जब बाढ़ आती है तो वह पानी मलिन ही होता है ।सूक्ति इस बात की ओर संकेत करती है कि धनोपार्जन न्याय से किया जाना चाहिये।
अधिकांश देखने में आता है कि हमारे विपणक बन्धु अपने द्वारा वितरणीय वस्तु का विक्रय भाव बम्बई के भाव समाचार जानकर बदलते रहते हैं। यह वृत्ति उचित है या अनुचित इस विषय में व्यावहारिक मत भेद चलता है। किन्तु वह न तो धार्मिक है और न ही नैतिक तथा न्यायिक और सामाजिक भी सर्वथा नहीं है। व्यापारिक लाभ की मात्रा सीमित एवं निश्चित ही होना चाहिए । धन संग्रह की प्रवृत्ति की धारा में यदा कदा अपने पास रखी वस्तु का मूल्य बढ़ाते रहना प्रशंसनीय नहीं कहा जा सकता-ही नहीं, यह पाप के दायरे से बाहर नहीं है । लोभ पाप का बाप कहा गया है। और एक चोर बाजारी अपनी लोभ प्रवृत्ति के पोषण और रक्षण के लिये सारे वातावरण को कलुषित कर देता है । वह केवल अपने सम- व्यावसायियों को फोड़ कर अपनी रक्षा के लिए संघ बनाता है और उन्हें अपने ही पथ पर चलने के लिए लुभाता तथा प्रेरित करता है किन्तु साथ ही शिथिल चरित्र राज्यधिकारियों और राज-कर्मियों को अपनी स्वार्थ-पूर्ति के लिए उत्कोच प्रदान कर उनके मार्ग से पतित करता है।
भ्रष्टाचार बढ़ जाने की चर्चा बड़े सबल रूप से वर्तमान गृहमंत्री श्री गुलजारी लाल जी नन्दा के स्वराष्ट्र विभाग का खरीता सँभालने के उपरांत चली थी और परिणाम स्वरूप किन्हीं किन्हीं राज्यों में इसके विषय में पृथक विभाग खोला गया तथा उत्कोच लेने तथा उत्कोच देने वाले नागरिकों को समुचित पथ पर लाने एवं अपराधियों को दण्ड देने के लिए भारतीय संसद ने भ्रष्ट्राचार निरोधक अधिनियम भी पारित कराकर
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