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कृतित्व/हिन्दी
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ तात्पर्य - शब्दार्थ से निर्गत अलौकिक ध्वनि को विज्ञों ने काव्य की आत्मा कहा है यह पूर्व परम्परा से समागत सिद्धांत है। पुराण के आधार पर निर्मित यह जयोदय काव्य यह ध्वनि देता है कि लौकिक धर्म - अर्थ काम पुरूषार्थ की सिद्धि के अनंतर मोक्ष पुरूषार्थ की सिद्धि करना अंतिम पारमार्थिक लक्ष्य है। "अदोषौ सगुणौ सालंकारौ च शब्दार्थों काव्यम्"
___ (आचार्य हेमचंद्र कृत) अर्थ स्पष्ट है। काव्य की यह परिभाषा भी जयोदय काव्य में पूर्ण रूपेण व्याप्त है अत: यह ग्रन्थ काव्य है। "शब्दार्थी निदोषौ सगुणौ प्राय: सालंकारौ च काव्यम्"।
(महाकवि वाग्भट) भावार्थ स्पष्ट है । काव्य की इस परिभाषा की दृष्टि से भी जयोदय में काव्यत्व सिद्ध होता है। "गुणालंकारसहितौ शब्दार्थो दोषविवर्जितौ काव्यम् ।
(महाकवि विद्यानाथ) इस परिभाषा की अपेक्षा से भी जयोदय काव्य है । तात्पर्य - शब्दार्थ काव्य का शरीर है विद्वानों ने शब्दार्थ रूप काव्य की आत्मा को ध्वनि कहा है। "शब्दार्थ वपुरस्य तत्र विवुधैरात्माभ्यधायि ध्वनिः"
(महाकवि विद्याधर) तात्पर्य - शब्दार्थ काव्य का शरीर है विद्वानों ने शब्दार्थ रूप काव्य की आत्मा को ध्वनि कहा है । इस काव्य की परिभाषा से सिद्ध है कि 'जयोदय' शब्दात्मक द्रव्यश्रुत ज्ञान है और भावात्मक भाव श्रुत ज्ञान है जिसको ध्वनि कहते हैं जो ध्वनि शब्दों द्वारा अवाच्य है। “शब्दार्थो काव्यम्"।
(काव्यकार रूद्रट) भाव स्पष्ट है । इस संक्षिप्त परिभाषा की दृष्टि से भी जयोदय में काव्यत्व सिद्ध होता है।
निर्दोषा लक्षणवती, सरीति: गुणभूषणा । सालंकार रसानेकवृत्ति:, वाक् काव्यनाम भाक् ॥
(श्रीजयदेवकवि: चन्द्रालोकः पद्य 7) तात्पर्य - काव्य के दोषों से हीन, काव्यलक्षणों से युक्त, काव्यरीतियों से विभूषित, अलंकारों से चमत्कृत, शब्द वृत्तियों से संबद्ध वाक्य को काव्य कहते है । इस परिभाषा के अनुसार 'जयोदय' में सम्पूर्ण विशेषण संघटित होने से काव्यत्व प्रमाणित होता है। 'शब्दार्थालंकृतीद्धं, नवरसकलितं, रीतिभाषाभिरामम्' इत्यादि ।
(काव्याचार्य अजितसेन: अलंकार चिन्तामणि प्र.प.पद्या) भावसौन्दर्य - अक्षय सुख का इच्छुक, अनेकशास्त्रज्ञाता, अत्यंत प्रतिभा शाली कवि, शब्दार्था
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