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कृतित्व/हिन्दी
वाक्यंरसात्मकं काव्यं, दोषास्तस्पापकर्षकाः । उत्कर्ष हेतवः प्रोक्ताः गुणालंकाररीतयः । ।
तात्पर्य - सहृदयजनों के मानस में अनुभूत आनंद के जनक वाक्य या शब्दार्थ समूह को काव्य कह है। इसके विरूद्ध दोष काव्य के विध्वंसक होते है और गुण, अलंकार, रस, रीति आदि काव्य के साधन काव्य की उन्नति के कारक होते हैं।
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ
इस काव्य लक्षण के अनुसार जयोदय शिक्षित मानवों के मानस में आत्मानुभूतिकारक होने से काव्य के योग्य है ।
काव्य है।
(विश्वनाथ कविराज : साहित्य दर्पण : 1/3)
“तददोसो शब्दार्थो सगुणावन लांकृती पुन: क्वापि " (काव्याचार्य मम्मट: काव्यप्रकाशः प्र.उ. पृ. 10 ) तात्पर्य - दोषरहित गुणसहित एवं अलंकार शोभित शब्दार्थ - रचना काव्य का लक्षण है परन्तु कहीं - कहीं अलंकार रहित शब्दार्थ रचना भी काव्य माना गया है। जयोदय में यह अर्थ घटित होने से वह काव्य की श्रेणी में मान्य करने योग्य है ।
" रमणीयार्थ प्रतिपादक: शब्द: काव्यम् " । (पण्डितराज जगन्नाथः ध्वन्यालोक ) भाव:- रमणीय अर्थ का प्रतियादक शब्द काव्य का लक्षण है यह अर्थ घटित होने से 'जयोदय' सार्थक
'शब्दार्थो सहितौ काव्यं, गद्यं पद्यं च तद्विधा'
(काव्यविज्ञ भामह)
अर्थात् सम्मिलित शब्दार्थ अथवा हितकारी शब्दार्थ काव्य का लक्षण कहा गया है। इस लक्षण की दृष्टि से 'जयोदय' एक सफल एवं यथार्थ काव्य ग्रन्थ है । वह पद्य काव्य है । 'शरीरं तावदिष्टार्थ व्यवच्छिन्ना पदावली' ।
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( महाकवि - दण्डी)
भावसौन्दर्य - मानव के लिए हितकारी अर्थ से परिपूर्ण पद समूह काव्य रूप शरीर कहा जाता है । दण्डी कृत काव्य की यह परिभाषा 'जयोदय काव्य' में अक्षरश: परिपूर्ण व्याप्त है अत: 'जयोदय' श्रेष्ठ काव्य है। "काव्य शब्दोऽयं गुणालंकार संस्कृतयोः शब्दार्थयोः वर्तते
(वामनाचार्यकृतं)
अर्थात् - काव्य के गुण और अलंकारों से सुसंस्कृत शब्द एवं अर्थ में काव्य शब्द का व्यवहार होता है । काव्य की यह परिभाषा 'जयोदय काव्य' में पूर्णतया घटित होती है।
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“काव्यस्यात्मा ध्वनिरिति बधै: य: समाम्नातपूर्व : "।
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(काव्याचार्य आनंद वर्धन कृत)
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