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कृतित्व/हिन्दी
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ ग्रन्थ लोकहित और आत्महित करने वाला है इसमें वीर पुरूष का चरित्र एक प्रबल प्रमाण है।
अथवा 'साहित्य सम्मेलनम्' अर्थात् रस,छन्द, अलंकार गुण रीति आदि के माध्यम से जहाँ पर शब्दार्थो का उचित सम्मेलन है उसे साहित्य कहते है। इस महाकाव्य में छन्द रस अलंकार आदि के माध्यम से शब्दार्थो का श्रेष्ठ सम्मेलन है अत: यह साहित्यग्रन्थ है।
अथवा परस्पर सापेक्षाणां तुल्यरूपाणां युगपदेक क्रियान्वयित्वं साहित्यं इति श्राद्धविवेकः । अर्थात् परस्पर सापेक्ष तुल्यमेक वाले शब्दार्थो का एक साथ योग्य क्रियाओं के साथ संबंध जिस ग्रन्थ में होता है उसे साहित्य कहते है। इस महाकाव्य में भी साहित्य का उक्त लक्षण अक्षरशः संघटित होता है इसलिए यह साहित्यग्रन्थ कहने के योग्य है।
अथवा - 'विज्ञमनुष्य कृत श्लोकमयग्रन्थ विशेष: साहित्यं - इति शब्दकल्पदुमः ।' अर्थात् जिस ग्रन्थ में विद्वान मानव द्वारा श्लोकों (पद्यों) का सृजन किया गया हो उसे साहित्य कहते है । इस दृष्टि से जयोदय में संस्कृत विज्ञ पं. भूरालाल साहित्यशास्त्री द्वारा जय कुमार सुलोचना के जीवन चरित्र के वर्णन में सुन्दर श्लोकों का प्रणयन किया गया है । अत: यह साहित्यग्रन्थ है।
अथवा - ‘हितेन सह वर्तमानं इति सहितं, तस्य भावः इति साहित्यं ' । अर्थात् जो समस्त प्राणियों के हितकारी गुणकारी जो समस्त भाव हैं, पदार्थ हैं और शब्दार्थ हैं वे सभी साहित्य हैं । इस विशाल दृष्टि से जयोदय महाकाव्य तो साहित्य कोटि में अंतर्गत हो ही जाता है, परन्तु न्याय व्याकरण दर्शन, वेद, पुराण, काव्य, आयुर्वेद, ज्योतिष, छन्दशास्त्र, इतिहास, भूगोल, धर्म, गणित, अर्थशास्त्र आदि द्वादशांग श्रुतज्ञान के सर्व ही विषय साहित्य शब्द के अंतर्गत हो जाते है। अनेक स्थानों पर इसी अर्थ में साहित्य शब्द का प्रयोग किया गया है, जैसे भारत का प्राचीन और अर्वाचीन साहित्य बहुत विशाल है। अमेरिका में साहित्य का बहुत विकास हुआ है इत्यादि।
अथवा - सहितस्य भावः इति साहित्यम् 'अर्थात् साधारणत: युगपत् (एक साथ), संयुक्त, संहत, मिलित, परस्परापेक्षित, और सहगामी का जो भाव है उसे साहित्य कहते है । इस दृष्टि से भी जयोदय महाकाव्य साहित्य है कारण कि वह कर्तव्य कर्म का उचित समंवय करता है। और सभा आदि कार्यो में मानव समाज को संगठित करता है।
__ साहित्य की उक्त व्याख्याओं से यह सिद्ध हो जाता है कि जयोदय श्रेष्ठ साहित्य ग्रन्थ है और सामान्य दृष्टि से श्रेष्ठ काव्य ग्रन्थ है। दोनों विषयों का भाव (तात्पर्य)समान है। किन्तु शब्दों की दृष्टि से भेद है, इसी कारण से ग्रन्थ रचनाकारों ने लक्षण रूप काव्य ग्रन्थ होते हुए भी साहित्य दर्पण को काव्य दर्पण न कहकर साहित्य दर्पण कहा है और जयोदय महाकाव्य एवं रघुवंश महाकाव्य को साहित्य होते हुए भी साहित्य - जयोदय, न कहकर जयोदय महाकाव्य एवं रघुवंश महाकाव्य कहा है। इस प्रत्यक्ष प्रमाण से यह सिद्ध होता है कि सामान्यत: साहित्य और काव्य का एक ही प्रयोजन है।
जयोदय महाकाव्य में सामान्यत: काव्य की सिद्धि :- विवेक मानवों के हृदय में आत्मानन्द को . उत्पन्न करने वाले वाक्य या शब्द समूह को काव्य कहते है। इसका प्रमाण: -
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