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कृतित्व/हिन्दी
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ
लंकारों से भूषित, नवरसकलित, रीतियों के प्रयोग से सुन्दर, व्यंगय आदि अर्थो से सहित, दोषहीन, माधुर्य आदि गुणों से सम्पन्न, उत्तमनायक के चरितवर्णन से सुशोभित, उभयलोकहितकारी एवं सुस्पष्ट काव्य का सृजन करें। इस परिभाषा की दृष्टि से जयोदय काव्य, प्रणेता कवि और उत्तमनायक की श्रेष्ठता सिद्ध होती है। साहित्य और काव्य में अंतर -
विशेषरूप से विचार करने पर साहित्य और काव्य में अंतर सिद्ध होता है। काव्य के अंगों को जिसमें लक्षण कहे गये हो उसे काव्य कहते हैं । काव्य के अंग अनेक प्रकार के होते हैं जैसे - रस, अलंकार, गुण, लक्षण (चिन्ह), रीति, वृत्ति, अर्थ, शब्द आदि । काव्य के इन अंगो का किसी महापुरूष के जीवन चरित्र के वर्णन में प्रयोग किया गया हो या किसी वस्तु के वर्णन में प्रयोग किया गया हो उसे साहित्य कहते हैं । काव्य लक्षण ग्रन्थ है और साहित्य लक्ष्य अथवा वर्णनीय ग्रन्थ है । काव्यग्रन्थ जैसे साहित्य दर्पण, काव्य प्रकाश, अलंकार चिंतामणि आदि । साहित्य ग्रन्थ जैसे जयोदय महाकाव्य, रघुवंश महाकाव्य, नेषधमहाकाव्य, वीरोदयमहाकाव्य आदि । शब्दों की अपेक्षा दोनों (काव्य साहित्य) में अंतर स्पष्ट है । काव्य के प्रयोजन :
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चतुर्वर्गफलप्राप्ति:, सुखादल्पधियामपि । काव्यादेव यतस्तेन, तत्स्वरूपं निरूप्यते ॥
(साहित्य दर्पण: प्र परि. पद्य - 2)
तात्पर्य - काव्य एक ऐसा तत्व है जिससे अल्पबुद्धि मानवों को भी बिना किसी कष्ट साधना के धर्म अर्थ काम और मोक्ष रूप पुरूषार्थ की प्राप्ति होती है इसलिए काव्य का स्वरूप कथनीय है । महाकवि मामट ने भी काव्यालंकार में यही प्रयोजन कहा है ।
योदय काव्य के प्रणेता श्री पं. भूरामलजी सिद्धांत शास्त्री ने स्वकीय महाकाव्य में काव्य का यही प्रयोजन दर्शाया है।
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कथाप्यथामुष्य यदि श्रुतारात्तथा वृथा सार्य सुधासुधारा । कामैकदेशरिणी सुधा सा, कथा चतुर्वर्गनिसर्गवासा ॥
(जयोदय: प्र. स. पद्य - 3)
हे भव्य इस जयकुमार राजा की कथा यदि एक बार भी सुन ली जाये तो फिर उसके सामने अमृत की इच्छा भी व्यर्थ हो जायेगी । क्योंकि अमृत तो चार पुरूषार्थो में से काम रूप एक ही पुरूषार्थ को प्रदान करता है किन्तु इस जय कुमार राजा की कथा तो चारों पुरूषार्थो को प्रदान करती है। यह छन्द व्यतिरेकालंकार तथा अनुप्रास अलंकार से सुशोभित है ।
काव्य के कारण :
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अब काव्य रचना के कारणों पर विचार किया जाता है बिना कारणों के काव्य रचना संभव नहीं है । काव्य रचना के कारण मुख्यत: तीन प्रसिद्ध है ( 1 ) व्युत्पत्ति (2) प्रज्ञा (3) प्रतिभा ।
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