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कृतित्व / हिन्दी
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ
भारत में जैन तीर्थक्षेत्रों का मूल्यांकन
भारतीय संस्कृति, पुरातत्व और इतिहास में तीर्थक्षेत्रों का महत्वपूर्ण स्थान है । ये परम पावन तीर्थ महापुरुषों, तीर्थंकरों, महर्षियों और शलाका-पुरुषों के ज्वलंत स्मारक हैं। जो आज भी तीर्थंकरों आदि दिव्यपुरुषों के लोक कल्याणकारी संदेशों को मौन आकृति से कह रहे हैं। इन पूज्यतीर्थों ने प्राचीन संस्कृति, पुरातत्व, इतिहास, एवं दर्शन, समाज और धर्म के विकास में स्वयं को समर्पित कर दिया है।
संस्कृत - व्याकरण के अनुसार तीर्थ शब्द की व्याख्या इस प्रकार है- "तीर्थते संसार सागरः येन निमित्तेन तत्तीर्थमिति' अर्थात् जिस पवित्र साधन से संसार सागर को पार किया जाये वह तीर्थ कहा जाता है । तीर्थ शब्द विभिन्न अर्थो की अपेक्षा भी व्यापक रूप से प्रसिद्ध है। संस्कृत कोष - विज्ञों ने तीर्थ शब्द के अनेक अर्थ दर्शायें है, यथा शास्त्र, अवतार, जलाशय का घाट, महापात्र, पुण्यक्षेत्र, उपाध्याय, दर्शन, यज्ञ, तपोभूमि | इससे सिद्ध होता है कि तीर्थक्षेत्र परम कल्याणकारी हैं और उसकी उपासना विश्व के प्राणियों का हित करने वाली है ।
तीर्थो पर तीर्थंकरों ने, आचार्यों ने और महापुरुषों ने अंतर और बाह्य तपों द्वारा आत्म- विशुद्धि को किया, और धर्म, साहित्य, दर्शन, कला, गणित, विज्ञान, आयुर्वेद, ज्योतिष नीति आदि विषयों पर शास्त्रों का सृजन करते हुए लोक कल्याण एवं आध्यात्मिक ज्योति का विकास किया । इसी कारण ये तीर्थं विश्व वंदनीय देवता माने जाते है । यह विषय तीर्थों के इतिहास एवं ग्रन्थों से ज्ञात होता है। अनेक तीर्थों ने स्वयं साहित्य
विकास और पुनरुद्धार में महत्वपूर्ण योगदान दिया है । श्रवणबेलगोल तीर्थ, गिरनार पर्वत और अजंता के शिलालेख, पुरातत्व, एवं गुफाएँ इस वृत्त में ज्वलंत प्रमाण है। इस विषय में जैन शिलालेख संग्रह भाग- 12 का पठन करना आवश्यक है।
तीर्थ - शब्द की अन्य व्याख्या:
तीर्थंकरोतीत तीर्थंकर : अर्थात् जो महात्मा धर्म तीर्थ का प्रवर्तन करते हैं उनको तीर्थंकर कहते है ।
‘आदिपुराण' में हस्तिनापुर के महाराज श्रेयांस को दान कर्तव्य का सर्वप्रथम प्रवर्तन करने के कारण दानतीर्थं प्रवर्तक कहा गया है। इसी प्रकार मुक्ति प्राप्ति का कारण रत्नत्रय (सम्यक् दर्शन, ज्ञान, चारित्र) को 'रत्नत्रयतीर्थ' कहा गया है । (आदिपुराण अ. 2, श्लोक 39 )
तीर्थक्षेत्रों का मूल्यांकन :
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सिद्धक्षेत्रे महातीर्थ, पुराणपुरुषाश्रिते ।
कल्याणकलिते पुण्ये, ध्यानसिद्धिः प्रजायते ॥
तात्पर्य - शलाका महापुरुषों से प्रभावित, कल्याण का स्थान, पवित्र सिद्धक्षेत्र रूप महान् तीर्थ पर ध्यान करने से परमात्म पद तथा स्वर्ग आदि वैभव की सिद्धि होती है (शुभचन्द्राचार्य: ज्ञानार्णव: पृ. 263) तीर्थमार्ग की धूलि के सेवन से मानव रजरहित (पापरहित) होते हैं। तीर्थक्षेत्रों पर भ्रमण से मानव
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