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कृतित्व/हिन्दी
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ भव-भ्रमण नहीं करते है। तीर्थयात्रा के लिए सम्पदा का व्यय करने से उभय लोक में मानव सम्पदा से शोभित होते है। परमात्मा के मार्ग की अथवा तीर्थक्षेत्रों की वास्तविक उपासना करने से मानव पूज्य हो जाते है 'पावनानि हि जायन्ते, स्थानान्यपि सदाश्रयात्।' (भारत के दि.जैनतीर्थ: प्रथम भाग प्रस्तावना पृ. 13) तात्पर्य - महापुरुषों की संगति से साधारण स्थान भी पवित्र हो जाते हैं। जहाँ महापुरुषों का निवास हो, तो वह भूमि पूज्यतम अवश्य हो जाती है अर्थात् वह स्थान तीर्थ बन जाता है। इसमें आश्चर्य की क्या बात है, जैसे कि रसायन अथवा पारस के संयोग से लोहा सुवर्ण हो जाता है।
__ भारत वर्ष अनेक धर्म, दर्शन एवं संस्कृतियों का संगम है। इस देश में वैदिक, जैन, बौद्ध, इन प्रमुख संस्कृतियों का विकास हुआ है और वर्तमान में हो रहा है। इसलिए भारत में मुख्यत: वैदिक, जैन एवं बौद्ध संस्कृति के अमर स्मारक के रूप में तीर्थक्षेत्र अपना ज्वलंत अस्तित्व दिखला रहे हैं। जैन तीर्थो के प्रकार -
__प्राकृत में जैन दर्शन की दृष्टि से जैन तीर्थ तीन प्रकार के दृष्टिगोचर हो रहे है। 1. निर्वाण क्षेत्र, 2. सिद्ध क्षेत्र, 3. अतिशय क्षेत्र । निर्वाण क्षेत्र की परिभाषा -
जिस स्थान से श्री ऋषभदेव आदि चौबीस तीर्थंकरों ने परम ध्यान-साधना के माध्यम से निर्वाणपद (मुक्तिपद) को प्राप्त किया, अतएव जहाँ पर देवों तथा मानवों द्वारा निर्वाण कल्याणक महोत्सव किया गया हो वे निर्वाण तीर्थ कहे जाते हैं, जैसे भगवान श्री ऋषभदेव ने कैलाश पर्वत से, नेमिनाथ ने गिरनार पर्वत से, वासुपूज्य तीर्थंकर ने चम्पापुर क्षेत्र से, महावीर तीर्थंकर ने पावापुर क्षेत्र और शेष बीस तीर्थंकरों ने सम्मेदशिखर महातीर्थ क्षेत्र से निर्वाण पद को प्राप्त किया है, इसलिए ये तीर्थ निर्वाण क्षेत्र के नाम से प्रसिद्ध है। सिद्ध क्षेत्र की परिभाषा -
जिस स्थान से तीर्थंकरों से भिन्न शलाका महापुरुषों ने, मुनीश्वरों, आचार्यो एवं उपाध्यायों ने शुक्ल ध्यान के द्वारा मुक्ति (परमात्मपद) को प्राप्त किया है, वे सिद्ध क्षेत्र कहे जाते हैं जैसे चूलगिरि (बड़वानी), तुंगीगिरि,सिद्धवरकूट, द्रोणगिरि,रेशन्दीगिरि, कुन्थलगिरि आदि । यद्यपि निर्वाण क्षेत्रों से भी बाहुबली आदि मुनीश्वरों ने परमात्मपद को प्राप्त किया है तथापि उन तीर्थक्षेत्रों में तीर्थंकरों के निर्वाण क्षेत्र की ही मुख्यता है तथापि तीर्थंकरों के तीर्थ में उन मुनीश्वरों की भी गणना की जाती है। अतिशय क्षेत्र की परिभाषा -
जिन स्थानों में 24 तीर्थंकरों के गर्भकल्याणक, जन्मकल्याणक, दीक्षाकल्याणक एवं ज्ञानकल्याणक के महोत्सव हुए हो, शलाका महापुरुषों ने ध्यान साधना की हो, शास्त्रों का निर्माण महोत्सव किया गया हो, अथवा आत्म साधना के कारण अन्य कोई देवकृत अतिशय या चमत्कार हुए हो, अथवा धार्मिक विशिष्ट पुरुषों मन्दिरों एवं उपासना गृहों आदि का निर्माण हुआ हो, वे अतिशय क्षेत्र कहे जाते है जैसे हस्तिनापुर, अयोध्या, ऋषभदेव,ईश्वरवारा, बजरंगढ़ महावीरजी, तिजारा, पदमपुरी, पिसनहारी-मढ़िया श्रवणवेलगोल, मूडबिद्री (दक्षिणकाशी), धर्मस्थल आदि ।
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