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________________ कृतित्व/हिन्दी साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ रोगी को स्वस्थ बनाने के लिये आपरेशन करना पड़ा, वह रोगी अकस्मात् मरण को प्राप्त हो गया। यहां पर डाक्टर महोदय के द्वारा जीव-वध होने पर भी डॉक्टर हिंसा फल का भागी नहीं है, कारण कि डॉक्टर के विचार रोगी-वध के नहीं थे, अपितु रोगी की सुरक्षा के विचार थे। ____भवार्थ- इस श्लोक का भावार्थ श्री वर्णी जी द्वारा 35 लाइनों में दृष्टान्त सहित अंकित किया गया है जो पठनीय है। (पुरूषार्थ सिद्धयुपाय - पृ. 176-77) न्यायतीर्थ उपाधि प्राप्त वर्णी जी ने इस ग्रन्थ की स्वरचित भाव-प्रकाशिनी भाषा-टीका को दश अध्यायों में विभक्त किया है। इसलिये इस का बाह्य कलेवर स्थूल हो गया है । इस ग्रन्थ का बाह्य रूप स्थूल होने पर भी, पद्यानुवाद, भाव-प्रकाशिनी टीका, भावार्थ, विशदार्थ, शंका-समाधान, प्रश्नोत्तर आदि ज्ञेय सामग्री के द्वारा इस ग्रन्थ की रमणीयता, उपादेयता और सरलता-अधिक से अधिक प्रसिद्ध हो गई है । अध्यायों का परिचय अधोलिखित ज्ञातव्य है :-पीठिका पृ. 1 से 40 तक - मंगलाचरण, ग्रन्थ - रचना का मुख्य लक्ष्य और निश्चय, व्यवहार नय की उपयोगिता। (1) अध्याय पृ. 41 से 72 तक - जीव-तत्व का लक्षण कर्मबन्ध की परम्परा । पुरुषार्थसिद्धि का उपाय। सम्यग्दर्शन के प्राप्त करने की सामग्री आदि । (2) अध्याय - पृ. 73 से 151 तक- निश्चिय व्यवहार रत्नत्रय की उपयोगिता, सम्यग्दर्शन का लक्षण-भेद। सम्यक्-दर्शन के 63 गुण, आठ अंगों की व्याख्या, सम्यग्ज्ञान की व्याख्या आदि। (3) अध्याय पृ. 152 से 195 तक श्रावक धर्म का कथन, अन्य दर्शन की अपेक्षा हिंसा, अहिंसा की व्याख्या, आदि। (4) अध्याय - पृ. 196 से पृ. 213 तक विभिन्न आचार्यों के मत से मूल गुणों का प्रदर्शन। हिंसा एवं अहिंसा के विषय में शंका-समाधान, उत्सर्ग-अपवाद मार्ग का स्पष्टीकरण । (5) अध्याय पृ. 214 से 298 तक :- अहिंसात्मक व्रतों के संसाधन के उपाय धर्म एवं अधर्म की साधना के परिणाम । असत्य, चौर्य, कुशील और परिग्रह की परिभाषा एवं भेद । पंच अणुव्रतों के व्याख्यान । रात्रि भोजन से हानि और उसका त्याग ।(6) अध्याय- पृ. 299 से 357 तक :- सात शीलव्रत (3 गुणव्रत, 4 शिक्षाव्रत) की परिभाषा । श्रावक के 17 नियम और शंका समाधान । दाता के सात गण। सपात्रों के भेद। 12 व्रतो से 11 प्रतिमाओं का निर्माण । (8) अध्याय- पृ. 358 से पृ. 365 तक सल्लेखना का व्याख्यान । सल्लेखना में आत्मघात का सप्रमाण निराकरण । (7) अध्याय- पृ. 366 से पृ. 388 तक:- बारह व्रतों के 60 अतिचार, सम्यग्दर्शन के 5 अतिचार, समाधि-मरण के 5 अतिचारों का निर्देश । (9) अध्याय- पृ. 389 से पृ. 423 तक :- सकल-चरित्र का व्याख्यान । शंका-समाधान तप के भेद प्रभेद। सम्यग्दर्शन की विशेषता । 6 आवश्यक, 3 गुप्ति, 5 समिति, 10 धर्म, 12 अनुप्रेक्षा 22 पीरषह जय इन सबकी परिषाभा (10) अध्याय पृ. 414 से पृ. 437 तक ग्रन्थ का सामान्य सारांश । रत्नत्रयके विषय पर शंका समाधान । स्याद्वाद-नय से तत्वों की सिद्धि । टीकाकार की प्रशस्ति । : ग्रन्थकार की नम्रता : वर्णैः कृतानिचित्र: पदानि तु पदैः कृतानि वाक्यानि । वाक्यैः कृतं पवित्रं, शास्त्रमिदं न पुनरस्माभिः ॥226।। 330 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org,
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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