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कृतित्व/हिन्दी
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ उक्त पद्य हरिगीतिका छन्द की ध्वनि में रचित है । इसका भाव है कि निश्चय व्यवहार - नय का परिज्ञान प्राप्त कर दोनों के यथायोग्य प्रयोग से ही सफलतापूर्ण ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक है । शब्दों का प्रयोग भावानुकूल एवं उत्प्रेक्षाकार और रूपकालंकार से पद्य अलंकृत किया गया है। द्वितीय उदाहरण
(पुरुषार्थ पृ. 35) चारित्र की परिभाषा एवं भेद
हिंसातोनृतवचनात्, स्तेयादब्रह्मत: परिग्रहतः ।
कातस्न्यैकदेशविरते: चारित्रंजायते द्विविधम्॥40 हिन्दी पद्यानुवाद
हिंसा, झूठ, चौर्य, अरु परिग्रह, पर नारी सेवन है पाप । इनका सीमित त्याग करे से, एक देश - व्रत होता माप । पूरण सब का त्याग करे से, सकल - महाव्रत पलता आप ।
यही मार्ग है सुख का कारण, यथाशक्ति होओ निष्पाप 140 कथित पद्य हरिगीतिका छन्द की ध्वनि में निबद्ध है। इसका तात्पर्य है कि हिंसा, झूठ, चोरी, दुराचार और परिग्रह (लोभ - तृष्णा) इन पाँच पाप कार्यो से एक देश (आंशिक) विरक्त होना गृहस्थों का अणुव्रत कहा जाता है और इन पाप कार्यों से पूर्णत: विरक्त होना साधु महात्माओं का महाव्रत कहा जाता है । इस प्रकार चारित्र दो कक्षाओं में विभक्त है । इस पद्य में भावों के अनुसार शब्दों का प्रयोग किया गया है। साथ ही मानव जीवन में सुख - शान्ति का मार्ग दर्शाया गया है। इस सम्पूर्ण मूलग्रन्थ संस्कृत का हिन्दी पद्यानुवाद श्री वर्णी जी द्वारा भावपूर्ण दक्षता के साथ किया गया है। (पुरुषार्थ पृ. 152)
इसके अतिरिक्त इस श्रेष्ठ ग्रन्थ की "भावप्रकाशिनी भाषा - टीका" का निर्माण भी सूक्ष्मता के साथ सप्रमाण किया गया है। जो भाषा टीका दो प्रकार से की गई है, प्रथम अन्वय और अर्थ तथा द्वितीय भावार्थ प्रत्येक संस्कृत श्लोक का स्पष्टतया निर्दिष्ट किया गया है । जो भाषा टीका छात्रों को तथा प्रत्येक स्वाध्यायी व्यक्तियों को ज्ञान विकासार्थ अध्ययन करने के योग्य है। यह भी एक विशेषता ज्ञातव्य है कि प्रत्येक संस्कृत श्लोक के ऊपर शीर्षक (हेडिंग) का उल्लेख है जिससे श्लोक का प्रतिपाद्य विषय जानने में सुविधा प्राप्त होती है। इस भाषा टीका के कुछ उदाहरण प्रस्तत किये जाते है :नयों की अपेक्षा आत्मा का लक्षण
अस्ति पुरुषश्चिदात्मा विवर्जित: स्पर्श गन्धरस वर्णे: ।
गुणपर्ययसमवेत: समाहित: समुदयव्यय ध्रौव्यैः ।। अन्वय अर्थ - आचार्य 'निश्चय - नय' से आत्मद्रव्य का लक्षण कहते हैं कि (पुरुषः) आत्मद्रव्य (चिदात्मा) चैतन्य - ज्ञान, दर्शन - स्वरूप और (स्पर्शगन्धरसवर्णे: विवर्जितः) स्पर्श, गन्ध, रस, वर्ण इन
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