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कृतित्व/हिन्दी
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ काय मार्गणा
____जाति नाम कर्म से अविनाभावी त्रस और स्थावर नाम कर्म के उदय से जो शरीर प्राप्त होता है उसे काय कहते हैं। एकेन्द्रिय जाति तथा स्थावर नाम कर्म के उदय से जो शरीर मिलता है उसकी स्थावर काय संज्ञा है और वह पृथिवी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति के भेद से पांच प्रकार का होता है तथा द्वीन्द्रियादि जाति और त्रस नाम कर्म के उदय से जो शरीर प्राप्त होता है उसे त्रसकाय कहते है। कायमार्गणा में उसका एक ही भेद लिया जाता है।
पृथिवी, जल, अग्नि और वायु कर्म के उदय से पृथिवी काय आदि की उत्पत्ति होती है इन सभी के वादर और सूक्ष्म के भेद से दो प्रकार के शरीर होते है।
वनस्पति नाम कर्म के उदय से वनस्पति काय उत्पन्न होता है। इसके प्रत्येक वनस्पति और साधारण वनस्पति के भेद से दो भेद हैं। प्रत्येक उसे कहते है जिसमें एक शरीर का एक ही जीव स्वामी होता है और साधारण उसे कहते है जहां एक शरीर के अनेक जीव स्वामी होते हैं। प्रत्येक वनस्पति के भी दो भेद हैं, 1 सप्रतिष्ठित प्रत्येक और 2 अप्रतिष्ठित प्रत्येक । जिनके आश्रय अनेक निगोदिया जीव रहते हैं उन्हें सप्रतिष्ठित प्रत्येक और जिनके आश्रय अनेक निगोदिया नहीं रहते उन्हें अप्रतिष्ठित प्रत्येक कहते हैं।
जिनकी शिरा, सन्धि और पर्व अप्रकट हो, जिसका भंग करने पर समान भंग हो, और दोनों भंगों में तन्तु न लगे रहें तथा भेदन करने पर भी जिसकी पुन: वृद्धि हो जावे वह सप्रतिष्ठित कहा जाता है और इससे भिन्न अप्रतिष्ठित प्रत्येक है।
जिनका आहार तथा श्वासोच्छवास साधारण-समान होता है अर्थात् एक के आहार से सबका आहार और एक के श्वासोच्छवास से सबका श्वासोच्छवास हो जाता है, एक के जन्म लेने से सबकाजन्म और एक के मरण से सबका मरण हो जाता है,वह साधारण कहा जाता है वादर निगोदिया जीवों के स्कन्ध, अंडर, आवास, पुलवि और देह इस प्रकार पांच भेद होते हैं और ये उत्तरोत्तर असंख्यात लोक गुणित होते जाते है। एक निगोदिया जीव के शरीर में द्रव्य प्रमाण की अपेक्षा सिद्ध राशि तथा समस्त अतीत काल के समयों से अनन्त गुणे जीव रहते हैं। साधारण का दूसरा प्रचलित नाम निगोद है । यह निगोद, नित्यनिगोद और इतरनिगोद की अपेक्षा दो प्रकार का होता है। नित्य निगोद में दो विकल्प हैं-एक विकल्प तो यह है कि जिसने त्रसपर्याय आज तक कभी न प्राप्त की है और न कभी प्राप्त करेगा, उसी पर्याय में जन्ममरण करता रहता है। तथा दूसरा विकल्प यह है कि जिसने आज तक त्रसपर्याय पाई तो नहीं है परन्तु आगे पा सकता है। इतरनिगोद वह कहलाता है जो निगोद से निकल कर अन्य पर्यायों में घूमकर फिर निगोद में उत्पन्न होता है।
द्वीन्द्रियादिक जीवों को त्रस कहते हैं। स्थावर काय में एक ही मिथ्यादृष्टि गुणस्थान होता है और त्रसजीवों के चौदहों गुणस्थान होते हैं । त्रसजीवों का निवास त्रसनाड़ी में ही है जब कि स्थावर जीवों का निवास तीन लोक में सर्वत्र है । त्रस नाड़ी के बाहर त्रस जीवों का सद्भाव यदि होता है तो उपपाद, मारणान्तिकसमुद्घात और लोकपूरणसमुद्घात के समय ही होता है अन्य समय नहीं । सूक्ष्म निगोदिया तो
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