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________________ कृतित्व / हिन्दी साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ शाकाहार और उससे विश्व की सुरक्षा संभव भारतीय साहित्य, धर्म और संस्कृति के विकास करने में भारतराष्ट्र के सभी दर्शनों एवं धर्मों ने अहिंसा सिद्धान्त का यथायोग्य प्रतिपादन किया है। जैनदर्शन में कहा गया है कि विश्व में एक ही प्रधान अहिंसा धर्म है और एक ही प्रधान हिंसा अधर्म (पाप) है। इससे सिद्ध होता है कि असत्य, चोरी, अपहरण, डकैती, भोगविलास, संग्रहवृत्ति, घमण्ड, क्रोध, मायाचार, भ्रष्टाचार-विचार, असंयम, शोक, हास्य, भय, घृणा, रति आदि सभी दोष हिंसा में गर्भित है अर्थात् हिंसा के दूसरे नाम हैं। इनसे विरुद्ध सभी सत्य, अचौर्य आदि गुण अहिंसा के पर्यायवाचक शब्द हैं। आ. अमृतचन्द्र ने इसी विषय को घोषित किया है - " आत्मपरिणामहिंसन, हेतुत्वात् सर्वमेव हिंसैतत् । अनृतवचनादिके वलमुदाहृत्तं शिष्यबोधाय ॥” अर्थात् आत्मा के शुद्ध भावों का घात होने के कारण असत्य आदि सभी दोष हिंसा है और आत्मशुद्धि के कारण होने से सत्य आदि सभी गुण अहिंसा रूप ही हैं। वैदिक साहित्य में भी कहा गया है - अहिंसासंभवो धर्म:, स हिंसातः कथं भवेत् । न तोपजानि पद्मानि जायन्ते जातवेदसः ॥ सारांश :- अहिंसा से धर्म या पुण्य कर्म उत्पन्न होता है, वह धर्म हिंसा से कैसे उत्पन्न हो सकता है अर्थात् कभी नहीं। जैसे कि कमल जल में उत्पन्न होते हैं किन्तु अग्नि मध्य में नहीं । अहिंसा विश्व का व्यापक सिद्धान्त है उसकी साधना के लिये अनेक कर्त्तव्यों का निर्देश किया गया है जो मानव जीवन में अत्यन्त उपयोगी हैं जैसे सत्यप्रयोग, अचौर्य, सन्तोष, सदाचार, द्यूतत्याग, मदिरात्याग, करुणा, परोपकार, सहयोग, रात्रिभोजनत्याग, जलगालन, अभक्ष्यत्याग आदि। इनके अतिरिक्त शाकाहार भी एक श्रेष्ठ कर्त्तव्य है जिससे कि अहिंसा की साधना सुरीत्या हो सकती है। आधुनिक युग में शाकाहार बहु प्रसिद्ध कर्त्तव्य हो गया है जिससे मांसाहार, मद्यपान, कुव्यसन, शिकार करना, पशुवध और मांसनिर्यात का सर्वथा विरोध हो जाता है। Jain Education International शाकाहार शब्द पर विचार करने से व्यापक और गंभीर अर्थ ही ध्वनित होता है केवल शाक (सब्जी) अर्थ ही नहीं होता है। शाकाहार दो शब्दों से रचा गया है- शाक + आहार = शाकाहार । मांस, मदिरा, पशुवध अभक्ष्यभक्षण, अण्डा आदि के विरोधी जितने खाद्य पदार्थ हैं वे सभी शाक शब्द से ग्रहण किये जाते हैं। जैसे गेहूँ, दाल, चना, उड़द, चावल, मसूर आदि खाद्यान्न पदार्थ | मूंगफली, सिंघाड़ा, रजगिरा, तिली, खशखश आदि खाद्य वस्तु । सेव, सन्तरा, केला, चीकू, अखरोट, बादाम, काजू, किसमिस, चिरोंजी, पिस्ता, गरी आदि मेवा, भिण्डी, लौकी, गिलकी, परमल, टमाटर, कृष्माण्ड, आलू, भटा, टिण्डा आदि शाक पदार्थ । दूध, जल, शरबत, चाय, आमरस, नीबू, शरबत, फलरस आदि पेय पदार्थ । सीरा, मलाई, सत्तू आदि लेह्य पदार्थ, मगध, 274 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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