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कृतित्व / हिन्दी
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ पेड़ा, बरफी, इमरती, जलेबी, रसगुल्ला, फैनी, बाबर धेबर, कलाकन्द, गुजिया, चमचम आदि मिष्ठान, खारे सेव, पपड़ी, पापड़, तले चना, तली देवली, तली मूंगफली, दहीबड़ा, चटपटे भजिया एवं समोसा आदि नमकीन पदार्थ। इससे सिद्ध होता है कि शाक शब्द उक्त सभी प्रकार के भोज्य पदार्थों का उपलक्षण है। मात्र एक शब्द से शाक भाजी का ही ग्रहण नहीं समझना चाहिये ।
विचार करना है कि शाकाहार से विश्व के जीवों की सुरक्षा कैसे हो सकती है। इस समस्या पर विचार करने से स्वयं ही समाधान सिद्ध हो जाता है कि शाकाहार को प्राप्त करने में या खाने में किसी भी प्राणी का घात (कल्ल) नहीं करना पड़ता है, क्योंकि वह शाक आदि भूमि, जल और वृक्षों से प्राप्त हो जाती है। दुग्ध पशुओं से प्रसन्नतापूर्वक मिल जाता है। यह प्रत्यक्ष ही देखने में आता है कि शाकाहार करने के लिये किसी भी प्राणी का वध न होने से प्राणियों की सुरक्षा स्वयंमेव सिद्ध हो जाती है। मांसाहार से प्राणियों की सुरक्षा नहीं हो सकती।
वि.सं. 10 सती के आध्यात्मिक सन्त श्री अमृतचन्द्र आचार्य ने पुरुषार्थ सि. श्लो. 65 में घोषित किया -
न बिना प्राणिविधातान्मांसस्योत्पत्तिरिष्यतेयेस्मात् ।
मांसं भजतस्तस्मात् प्रसरत्यनिवारिता हिंसा ॥
सारांश :- जिस कारण से प्राणियों के वध किये बिना मांस की प्राप्ति (उत्पत्ति) नहीं हो सकती है इस कारण मांसाहारी पुरुष को नियम से प्राणी हिंसा का दोष प्राप्त होता है। अर्थात् मांसाहार करने से प्राणियों सुरक्षा कभी नहीं हो सकती। किन्तु शाकाहार करने से ही प्राणियों की सुरक्षा संभव है।
शाकाहार में दूसरी विशेषता यह है कि भूमि, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति इन मूल तत्वों से उत्पन्न हुए शाक, फल, अन्न, मेवा आदि पदार्थ सर्व प्राणियों को सुख शान्ति से जीवन निर्वाह के लिये सुलभ प्राप्त हो जाते हैं इसलिये भूमि, जल आदि तत्वों की सुरक्षा करना मानव का आवश्यक कर्त्तव्य है। वर्तमान में ही पर्यावरण की सुरक्षा एवं आवश्यक संतुलन कहा जाता है।
शाकाहार के सेवन से जहां मानवों के जीवन की सुरक्षा है वहां विश्व में देश में नगर में और ग्रामों में न्याय नीति और शान्तिपूर्ण जीवन है । शाकाहार अहिंसा वृक्ष की एक शाखा है और अहिंसा विश्वा व्यापक धर्म है। नीति संग्रह में कथन है -
अहिंसा परमोधर्म:, तथाऽहिंसा परमोदमः ।
अहिंसा परमं दानं, अहिंसा परमं तपः ॥
अब विचार करना है कि वर्तमान में मानवों का जीवन नीति एवं शान्तिपूर्ण क्यों नहीं है । इच्छाओं ज्वाला क्यों बढ़ रही है ? पशु पक्षियों का अधिक वध क्यों हो रहा है ? जलपान का स्थान मदिरापान ने अधिक क्यों ले लिया है ? भ्रष्टाचार अधिक क्यों बढ़ रहा है ? इन सब प्रश्नों का एक ही उत्तर निकलता है कि
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