________________
कृतित्व/हिन्दी
साहित्य मनीषी की (ब) स्थूल ऋजुसूत्रनय - जैसे अपनी आयु प्रमाण (50 वर्ष) मनुष्य पर्याय का ग्रहण करना अथवा 30
वर्ष के राज्यकाल तक राजा का ग्रहण । 2. शब्दनय - जैसे दार, भार्या, कलत्र के भेद से स्त्री को 3 भेद रूप जानना । 3. समभिरूढनय - जैसे गो शब्द के 11 अर्थ होने पर भी अनेक प्रसिद्ध अर्थ गाय अथवा पशु ग्रहण करना | 4. एवंभूतनय - जैसे शिक्षा देते समय ही शिक्षक को शिक्षक कहना । राजा को राज्य करते हुए ही राजा
कहना, अन्य समय नहीं। व्यवहारनय (उपनय) के भेद और उनके प्रयोग -
उपनय के मुख्य तीन भेद हैं 1. सद्भूत व्यवहारनय, 2. असद्भूत व्यवहारनय, उपचरितअसद्भूत व्यवहारनय । उनमें से सद्भूत व्यवहार नय के दो प्रकार है । 1. शुद्ध , 2.अशुद्ध 1. शुद्ध सद्भूत व्यवहारनय - जो शुद्ध द्रव्य में शुद्ध गुणी - गुण तथा पर्याय पर्यायी का भेदरूप कथन करें।
जैसे सिद्धात्मा के केवलज्ञान आदि गुणों का तथा सिद्ध आत्मा की शुद्ध सिद्ध पर्याय का कथन करना। 2. · अशुद्ध सद्भूत व्यवहारनय - जो अशुद्ध द्रव्यों के अशुद्ध गुणगुणी तथा अशुद्ध पर्याय-पर्यायी में भेद
रूप कथन करे। जैसे संसारी जीव के मतिज्ञान आदि चार ज्ञान का तथा मनुष्य देव आदि पर्याय का कथन करना । जो अन्य द्रव्य में प्रसिद्ध धर्म का अन्य धर्म में समारोप करे उसको असद्भूत व्यवहारनय कहते है। इसके तीन प्रकार हैं - 1. सजाति , 2. विजाति 3.सजाति - विजाति । 1. स्वजाति - असद्भूत व्यवहारनय - जो सजातीय पदार्थो में अन्यत्र प्रसिद्ध धर्म का अन्यत्र
समारोप करे, जैसे परमाणु बहुप्रदेशी है। 2. विजाति असद्भूत व्यवहारनय - जो विजातीय पदार्थो में अन्यत्र प्रसिद्ध धर्म का अन्यत्र समारोप
करे। जैसे मतिज्ञान आदि ज्ञान मूर्तिक हैं। 3. सजातिविजाति असद्भूत व्यवहारनय - जो सजातिविजाति - पदार्थो में अन्यत्र प्रसिद्ध धर्म
का अन्यत्र समारोप करे । जैसे ज्ञेय रूप जीव अजीव पदार्थो को ज्ञान कहना। असद्भूत व्यवहारनय के तीन भेदो में से प्रत्येक के भी 9,9 में उपभेद -
द्रव्य में द्रव्य का समारोप - जैसे चंद्र के प्रतिबिम्ब को चंद्र कहना। गुण में गुण का समारोप - जैसे मतिज्ञान आदि को मूर्तिक कहना ।
द्रव्य में गुण का समारोप - जैसे ज्ञान के विषय जीव अजीव को ज्ञान कहना । 4. द्रव्य में पर्याय का समारोप - जैसे परमाणु को बहुप्रदेशी कहना ।
गुण में द्रव्य का समारोप - जैसे ज्ञान को जीव कहना।
2.
-267
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org