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________________ कृतित्व/हिन्दी साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ गुण में पर्याय का समारोप - जैसे यह छात्र ज्ञान में निपुण है। 7. पर्याय में पर्याय का समारोप - जैसे इस मनुष्य का बलिष्ठ शरीर है। पर्याय में गुण का समारोप - जैसे इस मनुष्य में साहित्य का ज्ञान श्रेष्ठ है। पर्याय में द्रव्य का समारोप - जैसे यह शरीर पुद्गल द्रव्य है। इसी प्रकार विजाति और सजाति विजाति के भी 9,9 भेद होते हैं। उपचरित असद्भूत व्यवहारनय के प्रकार और प्रयोग - ___ जो प्रयोजन और निमित्त के वश से अन्य पदार्थो का अन्य पदार्थो में उपचार पूर्वक उपचार करे। इसके तीन प्रकार हैं. 1. सजाति 2. विजाति 3. सजाति विजाति। 1. सजाति उपचरित असद्भूत व्यवहारनय - सजाति पदार्थो में निमित्त व प्रयोजन के वश से उपचारोपचार करना, जैसे पुत्र स्त्री आदि मेरे हैं अथवा मैं इनका स्वामी हूँ। 2. विजाति उपचरित असद्भूत व्यवहारनय - विजातीय पदार्थों में निमित्त और प्रयोजन के वश से उपचारोपचार करना, यथा वस्त्र सुवर्ण रूपया मकान आदि मेरे हैं या मैं इनका स्वामी हूँ। 3. सजाति विजाति उपचरित असद्भूत व्यवहारनय - जो सजातीय विजातीय पदार्थो में निमित्त व प्रयोजन के वश से उपचारोपचार करे, जैसे देश राज्य राष्ट्र आदि मेरे हैं अथवा मैं इनका स्वामी हूँ। नयों पर आधारित लोक व्यवहार के प्रकार तथा प्रयोग निक्षेप (लोक व्यवहार) नयों पर आधारित है, यदि नय वाद न हो तो लोक व्यवहार एक मिनिट भी नहीं चल सकता। नय के बिना देश तथा समाज में सुख शान्ति नहीं रह सकती। द्रव्यार्थिकनय के आधार पर नाम स्थापना और द्रव्य ये तीन निक्षेप (लोक व्यवहार) होते हैं और पर्यायार्थिकनय के आधार पर भाव निक्षेप होता है कारण कि आदि के तीन निक्षेपों में द्रव्य (सामान्य) का प्रयोजन है और भाव निक्षेपों में पर्याय (विशेष) का प्रयोजन सिद्ध होता है। (1) नाम निक्षेप - जिस नय की अपेक्षा से गुण जाति द्रव्य तथा क्रिया की अपेक्षा के बिना ही लोक व्यवहार के लिए किसी मनुष्य का नाम रख लिया जाता है जैसे किसी बालक का नाम इंद्र कुमार है आदि । (2) स्थापना निक्षेप - जिस नय की अपेक्षा से धातु पाषाण काष्ठ आदि की तदाकार अथवा अतदाकार मूर्तियों में या चित्रों में मूल पदार्थ की स्थापना कर मान्यता करना, जैसे महावीर की मूर्ति में भ. महावीर की स्थापना करना अथवा सतरंज की गोटो में बादशाह आदि की कल्पना । पोस्ट की टिकट में म. गाँधी की स्थापना। (3) द्रव्य निक्षेप - जिस नय की अपेक्षा से किसी पदार्थ की भूत भविष्यत दशा की मुख्यता लेकर वर्तमान में उसके प्रति कथन करना । जैसे भूतपूर्व शिक्षक को, वर्तमान में वस्त्र विक्रेता होने पर भी शिक्षक (268 - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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