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कृतित्व / हिन्दी
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व्यवहारनय (पर्यायार्थिक ) नय के 6 प्रकार और प्रयोग -
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1. अनादि नित्य पर्यायार्थिकनय - जैसे सुमेरूपर्वत, चंद्र, सूर्य, तारागण, अकृत्रिम चैत्यालय आदि पुद्गल की स्थूल पर्यायें अनादि नित्य हैं
सादि नित्य पर्यायार्थिकनय -जैसे जीव की सिद्ध पर्याय सादि नित्य है ।
अनित्य शुद्ध पर्यायार्थिकनय जैसे द्रव्य की पर्यायें प्रतिसमय नष्ट होती हैं ।
सत्ताग्राहक नित्य अशुद्ध पर्यायार्थिकनय - जैसे द्रव्य को एक ही समय में उत्पाद व्यय नित्य पर्याय रूप
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कहना |
कर्मोपाधिनिरपेक्ष नित्य शुद्ध पर्यायार्थिकनय - जैसे सिद्ध पर्याय के समान जीव की संसार में शुद्ध पर्याय कहना ।
कर्मोपाधिसापेक्ष अनित्य अशुद्ध पर्यायार्थिकनय - जैसे संसारी जीव जन्म और मरण करते हैं । (शास्त्रीय) विशेष द्रव्यार्थिकनय के तीन प्रकार और प्रयोग -
6.
अन्वय द्रव्यार्थिकनय - जैसे द्रव्य, गुण तथा पर्याय स्वभावी है।
स्वद्रव्यादि ग्राहक द्रव्यार्थिकनय - जैसे जीव अपने द्रव्य क्षेत्र काल भाव की अपेक्षा जीव है।
पर द्रव्यादि ग्राहक द्रव्यार्थिकनय जैसे जीव पर द्रव्य क्षेत्र काल भाव की अपेक्षा जीव नहीं है ।
परम भाव ग्राहक द्रव्यार्थिकनय - जैसे आत्मा ज्ञान स्वभावी है ।
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(1) क- भूतनैगमनय - जैसे आज दीपावली के दिन भ. महावीर मोक्ष गये थे ।
ख- भाविनैगमनय - जैसे अर्हन्त को सिद्ध ही समझो।
ग- वर्तमाननैगमनय - जैसे भोजन की तैयारी करने वाले पुरूष का, प्रश्न के उत्तर में कहना है कि मैं भोजन बना रहा हूँ ।
च - सामान्य संग्रहनय जैसे सत्स्वरूप होने से सभी द्रव्यों का परस्पर अविरोध रूप से ग्रहण हो जाता है ।
क्ष - विशेष संग्रहनय जैसे चैतन्यस्वभावी जीव द्रव्य को जानना चाहिए ।
त- सामान्य संग्रहभेदक व्यवहारनय जैसे द्रव्य के दो भेद हैं।
1. जीव, 2. अजीव ।
थ- विशेष संग्रहभेदक व्यवहारनय - जैसे जीव के दो भेद हैं । 1. संसारी, 2. मुक्त | संसारी के दो भेद - 1. बस, 2. स्थावर इत्यादि ।
(शास्त्रीय) विशेष पर्यायार्थिकनय के चार भेद और उनके प्रयोग -
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साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ
1. (अ) सूक्ष्म ऋजुसूत्रनय जैसे वर्तमान समय वर्ती पदार्थ को पर्याय का ग्रहण करना अर्थात् वर्तमान एक समयवर्ती मनुष्य पर्याय आदि ।
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