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कृतित्व / हिन्दी
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ
अ की अपेक्षा ब दक्षिण ओर है। इसलिए नय पद्धति से ब दोनों ओर स्थित है। शिक्षक इस नय शैली से उत्तर को सुनकर बहुत प्रसन्न हुआ और कक्षा के छात्र हंस पड़े ।
इस प्रकार नय वाद जीवन के प्रत्येक व्यवहार में उपयोगी सिद्ध होता है उसके बिना एक कदम भी व्यवहार में नहीं बढ़ाया जा सकता है।
नयों के भेद प्रभेद और उनके प्रयोग -
"भूताभूतार्थ भेदेन व्यवहारोपि द्विधा, शुद्धनिश्चया शुद्धनिश्चय भेदेन निश्चयनयोपि द्विधा इति नयचतुष्टयम्” ।
(समयसार गाथा ||, तात्पर्यवृत्तिटीका पृ. 23) व्यवहारनय भी दो प्रकार है 1. भूतार्थ (सत्यार्थ), 2. अभूतार्थ (असत्यार्थ ) । निश्चयनय भी दो प्रकार है 1. शुद्ध निश्चय 2. अशुद्धनिश्चय । भूतार्थ व्यवहारनय भी दो प्रकार का है। 1. अनुपचरित (मुख्य) 2. उपचरित्र (गौण)। अभूतार्थ व्यवहारनय भी दो प्रकार का है 1. अनुपचरित (मुख्य) अभूतार्थ व्यवहार 2. उपचरित (गौण) । अभूतार्थ व्यवहारनय, इस प्रकार नयों के साधारण दृष्टि से छह भेद होते है । इन छह नयों के प्रयोग -
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नयों के निश्चय की अपक्षा से भेद और प्रयोग - 10 प्रकार
1.
शुद्ध द्रव्यार्थिकनय जैसे संसारी जीव सिद्ध के समान शुद्ध हैं, यह नय कर्म संयोग से निरपेक्ष
होता है।
4.
शुद्ध निश्चयनय - जैसे केवलज्ञानस्वभावी शुद्ध आत्मा । अशुद्धनिश्चयनय - जैसे मतिज्ञान आदि स्वरूप आत्मा ।
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6.
अनुपचरित (मुख्य) सद्भूतव्यवहारनय जैसे आत्मा के केवल ज्ञान आदि गुण ।
उपचरित सद्भूतव्यवहारनय जैसे आत्मा के मतिज्ञान आदि गुण ।
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मुख्य असद्भूतव्यवहारनय जैसे जीव का मानव शरीर, देव शरीर आदि
गौण असद्भूतव्यवहारनय जैसे जीव के धन सुवर्ण आदि द्रव्य ।
सत्ताग्राहक शुद्ध द्रव्यार्थिकनय जैसे द्रव्य नित्य है या सत् नित्य है ।
भेद निरपेक्ष शुद्ध द्रव्यार्थिक नय - जैसे द्रव्य अपने गुण पर्याय स्वभावात्मक है ।
कर्मोपाधि सापेक्ष अशुद्ध द्रव्यार्थिकनय जैसे क्रोध आदि विकारों
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मायावी और लोभी है ।
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उत्पाद व्यय सापेक्ष अशुद्ध द्रव्यार्थिकनय जैसे एक ही समय द्रव्य उत्पाद व्यय (नित्य) स्वरूप है । भेद सापेक्ष अशुद्ध द्रव्यार्थिकनय जैसे आत्मा के ज्ञान दर्शन आदि गुण है ।
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'अपेक्षा आत्मा क्रोधी मानी
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