________________
कृतित्व/हिन्दी
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ अर्थात् प्रमाण के द्वारा सिद्ध अनेक धर्मात्मक पदार्थ के किसी एक धर्म विशेष को ग्रहण करने वाला ज्ञान नय कहा जाता है । (राजवार्तिक पृ. 14. सूत्र 33 वार्तिक -1) श्री देवसेन आचार्य के मत से नय की परिभाषा -
"प्रमाणेन वस्तुसंगहीतार्थेकांशो नय: श्रुतविकल्पो वा, ज्ञातुरभिप्रायोवा नय: । नानास्वभावेभ्यो व्यावृत्य एकस्मिन्स्वभावे वस्तु नयति प्रापयतीति वा नय: " (आलाप पद्धति पृ.112)
अर्थात् - प्रमाण के द्वारा गृहीत वस्तु के एक अंश को ग्रहण करना नय है । अथवा श्रुतज्ञान का विकल्प (भेदप्रभेद) नय है, अथवा ज्ञाता का अभिप्राय विशेष नय है अथवा अनेक स्वभावों से वस्तु को व्यावृत कर किसी एक स्वभाव विशेष में विवक्षावश वस्तु को स्थापित करना या ग्रहण करना नय कहा जाता है । आगम की दृष्टि से नय की शैली मुख्यत: दो प्रकार की है । द्रव्यार्थिकनय - जो सामान्यरूप से या अभेदरूप से द्रव्य को जानता है जैसे ज्ञानस्वरूप आत्मा, वर्णादिरूपपुद्गल इत्यादि। 2. पर्यायार्थिकनय - जो विशेषरूप से या भेद रूप से द्रव्य की पर्यायविशेष को, किसी एक दृष्टिकोण से जानता है जैसे आत्मा का ज्ञान, जीव की मनुष्य पर्याय, आम का रस आदि।
उक्तंच-“द्रव्यं अर्थ:प्रयोजनं अस्येति-द्रव्यार्थिकः । पर्याय: अर्थ: प्रयोजनं अस्येति पर्यायार्थिकः ।" (सवार्थसिद्धि पृ. 9 अ.।, सूत्र - 6)
__ अध्यात्मशास्त्र की दृष्टि से भी नय दो प्रकार के होते हैं - 1. निश्चयनय, 2..व्यवहारनय । प्रश्न 1. द्रव्यार्थिकनय, 2.पर्यायार्थिकनय और 1. निश्चयनय, 2.व्यवहार नय इन नय के दो युगलों में सर्वनयों के मूलभूतनय कौन से हैं एवं इनमें क्या अंतर है ?
उत्तर- यद्यपि आगम (सिद्धांत एवं दर्शनशास्त्र) की दृष्टि से मूलनय द्रव्यार्थिकनय तथा पर्यायार्थिनय हैं कारण कि आगम में वस्तु तत्व की सिद्धि के लिए नयों के प्रयोग, इन दोनों के मूलाधार पर चलते हैं और आध्यात्मशास्त्र की दृष्टि से मूलनय निश्चय तथा व्यवहारनय हैं कारण कि आध्यात्मग्रन्थों में वस्तुतत्त्व की सिद्धि के लिए नयों के प्रयोग निश्चय व्यवहार के मूलाधार पर चलते हैं, तथापि द्रव्यार्थिकनय, निश्चयनय का
और पर्यायार्थिकनय, व्यवहारनय का कारण है, अत: इन दोनों युगलों में कारण कार्य सम्बंध सिद्ध होता है इसका प्रमाण
णिच्छयववहारणया मूलिमभेया णयाण सव्वाणं । णिच्छयसाहणहेउं, पज्जयदव्वत्थियं मुणह ॥
(नयचक्र -गाथा 183) सारांश - सर्वनयों के मूल निश्चय और व्यवहार से दो नय हैं तथा द्रव्यार्थिकनय और पर्यायार्थिकनय ये दोनों नय, निश्चय और व्यवहार के हेतु हैं। द्वितीय प्रमाण यह है -
(255)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org