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________________ साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ ज्ञान दीप प्रज्वलित रहेगा डॉ. पण्डित दयाचंद्र साहित्याचार्य जी के स्मृति ग्रन्थ को प्रकाशित करने का कारण यही रहा है कि एक गृहस्थ श्रावक अपने जीवन को कितनी ऊँचाईयों तक पहुँचा सकता है, कितनी ऊँचाईयों का स्पर्श कर सकता है ? सर्विस के साथ भी एक श्रावक अपने उपयोग को शुभोपयोग में कितना बदल सकता है उसकी सीमा पण्डितजी के व्यक्तित्व से जानी जा सकती है। संघर्षमय जीवन होते हुये भी जिनवाणी माँ की शरण नहीं छोड़ी, फलस्वरूप जिनवाणी माँ का ऐसा आशीर्वाद मिला कि अंत समय तक भी जिनवाणी माँ को स्मरण करते रहे और हृदय में विराजमान कर परलोकवासी हुये। अपने जीवन में स्वाध्याय और लेखनी का साथ नहीं छोड़ा। उनकी लेखनी से निसृत जितना भी जिन भाषित रहस्य है वह सभी भव्य जीवों के हृदय को भी प्रकाशित करेगा । सामाजिक स्तर पर परोपकार करना, नैतिक स्तर पर अपने जीवन को निर्दोष बनाना और धार्मिक स्तर पर जिनवाणी की सेवा कर हृदयंगम करना यह उनके जीवन का परम लक्ष्य था। उनका सम्पूर्ण जीवन दीपक की तरह स्व-पर- प्रकाशी रहा । पण्डितजी ने अपने ज्ञानदीप से समय-समय पर धर्मसभाओं को, शिविरों के माध्यम से भी समाज को तथा नियमित छात्रों को भी जिन भारती से प्रकाशित किया । साहित्याचार्य जी द्वारा लिखित स्मृति ग्रन्थ में जितने भी निबंध या कृतियाँ प्रकाशित हुई उनको पढ़कर सभी श्रावकगण अपने जीवन को भी धर्ममय बनायें और उनके समान जिनवाणी की सेवा करने का संकल्प करें, जिससे अपना जीवन भी प्रशस्त मार्ग पर चलता रहे । यही कारण है कि उनके द्वारा लिखित साहित्य स्मृति ग्रन्थ के माध्यम से प्रकाशित किया गया है। शुभकामनाओं के साथ. ब्र. किरण श्री वर्णी भवन मोराजी, सागर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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