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साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ समापन कथ्य -
सम्यक्दृष्टि भद्र परिणामी होता है । स्व. डॉ. पं. दयाचंद्र जी साहित्याचार्य भी भद्र परिणामी थे। जब सारे देश में दि. 12 फरवरी 2006 दिन रविवार को श्री 108 भगवान बाहुबली स्वामी का महामस्तकाभिषेक हो रहा था | श्री गणेश दि. जैन संस्कृत महाविद्यालय वर्णी भवन मोराजी सागर में महामस्तकाभिषेक चल रहा था। दिन के लगभग 11:30 बजे तक अभिषेक चला | लगभग पाँच हजार श्रद्धालू इस धार्मिक प्रभावना को देख रहे थे। पू. पं. श्री सजग स्मरण द्वारा विस्तर पर पड़े गोमटेश बाहुबली भगवान के अभिषेक कार्यक्रम की ध्वनि सुन रहे थे। नाड़ी धीमी तथा निराशपूर्ण स्थिति थी। ठीक दिन में 12:50 बजे पू. पं. जी ने णमोकार मंत्र के चिंतन के साथ अपनी जीवनलीला समाप्त की । पण्डितजी का मरण पण्डित मरण सदृश हुआ अंतिम संस्कार में स्थानीय विद्वतजन, उद्योगपति, श्रेष्ठीवर्ग तथा वर्तमान एवं पूर्व शिष्य शामिल हुये । पू. पण्डितजी का सम्पूर्ण जीवन व्यक्तिगत सातिशय विशेषताओं से परिपूर्ण था ।
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