SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 224
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कृतित्व/हिन्दी साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ के अर्धचंद्राकार शिलातल पर श्री वीर का जन्माभिषेक किया गया। इसी अवसर पर इन्द्र ने आप का मृगेन्द्र चिन्ह घोषित किया। इस महान् मानव के जीवन काल में पाँच नाम अधिक प्रसिद्ध हुए जो कि विशेष कारणों से सार्थक एवं महत्वपूर्ण सिद्ध होते हैं - चौबीसवें तीर्थंकर उस पूज्य आत्मा के गर्भ में आने के छ: माह पूर्व से ही राजवंश में, प्रजा में, लोक में, देवों में गुण, ऐश्वर्य और प्रमोद की वृद्धि हुई थी अत: प्रथम नाम 'वर्द्धमान' प्रसिद्ध हुआ विशाल उद्यान में अपने मित्रों के साथ खेलते हुए कुमार वर्धमान के साहस एवं वीरता की परीक्षा करने के लिए स्वर्ग से संगमदेव आया और सर्प का रूप धारण कर उस वृक्ष से लिपट गया, जिस पर तीर्थंकर कुमार अपने मित्रों के साथ बैठे थे। सब बालक डरकर भाग गये ।परन्तु वीरकुमार ने उसके साथ क्रीड़ा की और उसे दूर कर दिया ।इस कुमार का अतुल साहस देखकर वह देव अतिप्रसन्न हुआ और आपका 'महावीर' यह नाम घोषित किया। 'स्तुत्वा भवान् महावीर इति नाम चकार स:' (उत्तरपुराण) आचार्य श्री रविषेण ने 'महावीर' नाम का दूसरा निमित्त दर्शाया है पादांगुष्ठेन यो मेरूमनायासेन कम्पयत्। लेभे महावीर इति नाकालयाधिपात् ॥ (पद्मपुराण 2 - 76) अर्थात् - शक्तिशाली आत्मा ने बिना श्रम के ही पैर के अंगुष्ठ से मेरू पर्वत को कम्पित कर दिया था इसलिए देवेन्द्र ने आप का नाम 'महावीर' घोषित किया। कुमार वर्द्धमान जन्म से ही तीन ज्ञान के धारी और समस्त विद्याओं की सीमा के पारगामी थे। महानज्ञाता और विचारक आकर उनके बुद्धिबल से अपनी समस्या का समाधान प्राप्त कर लेते थे। एक समय तत्कालीन संजय और विजय नाम धारी दो चारण ऋद्धिधारी मुनिराजों को तत्वज्ञान के विषय में संदेह (शंका) हो गया था। विहार करते हुए वे कुण्डलपुर में पधारे । किसी समय कुमार वर्द्धमान के दर्शन मात्र से उनकी शंका का समाधान हो गया। वे आनंद में विभोर हो गये। कुमार की वैज्ञानिक प्रतिभा को देखकर उन मुनिराजों ने आपका 'सन्मति' (श्रेष्ठ बुद्धिशाली) नाम प्रतिष्ठित कर दिया। एक समय कुण्डलपुर नगर में राजद्वार का मदोन्मत्त हाथी रोष में शांकल तोड़कर उपद्रव करने लगा। नगर के मानव डरकर भागने लगे। कुमार महावीर साहस के साथ घटनास्थल पर गये ।वहाँ अपने पराक्रम तथा मधुर वचनों से उसको पकड़कर राजद्वार में बद्ध कर दिया । इस पराक्रम को देखकर जनता ने 'वीर' नाम से जयघोष किया। मोहशत्रुराज पर विजय करने के कारण देवराज ने तपस्वी महावीर को 'अतिवीर' के नामकरण से जयघोष को किया। इस प्रकार विशेष कारणों से चौबीसवें तीर्थंकर विश्व में पाँच विशेष अभिधानों से प्रतिष्ठित हुए। for private & Pers Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy