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कृतित्व/हिन्दी
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ था श्री महावीर के अस्तित्व काल में तथा उनकी निर्वाण प्राप्ति के अनंतरकाल में विहार प्रान्त जैन धर्म और जैन संस्कृति का केन्द्र रहा है । विहार के शासक सम्राट, श्रेणिक, सम्राट चेटक, सम्राट खार वेल, स. चंद्रगुप्त,स.अशोक आदि जैन शासक थे और उनका शासन अहिंसा सत्य के आधार पर था।
'विहार में मौर्य वंशी सम्राट चंद्रगुप्त और सम्प्रति ने जैन धर्म को अपनाकर उसका अच्छा उत्कर्ष किया। इसके बाद मौर्य साम्राज्य का हास होना प्रारंभ हुआ और उसके अंतिम सम्राट वृहद्ध को उसके ब्रा. सेनापति पुष्पमित्र ने मारकर राजदण्ड को अपने हाथों में ले लिया। इसने श्रमणों पर बड़ा अत्याचार किया। उनके विहार और स्तूप नष्ट कर दिये । फिर भी जब चीनी यात्री ह्वेनसांगई. सन् 629 में आया तो उसने वैशाली, राजगृह, नालंदा और पुण्डवर्धन में अनेक निर्ग्रन्थ साधुओं को देखा था। (जैन धर्म पृ. 35)।
___ इस प्रकार महावीर का जन्म स्थान तथा तपोभूमि होने से विहार एक ऐतिहासिक प्रदेश सिद्ध होता है। तीर्थंकर महावीर के गर्भ, जन्म, दीक्षा, ज्ञान और निर्वाण (मोक्ष) ये पाँच कल्याणक देव समाज और मानव समाज द्वारा महोत्सव के रूप में मनाये गये थे। तीर्थकर की ये पाँच, क्रियाएँ अखिल विश्व का कल्याण करती हैं । इसी कारण इनको कल्याणक शब्द से कहा जाता है। अन्य पुरूषों के गर्भ, जन्म आदि संस्कारों में यह विशेषता नहीं पाई जाती है। अत: उनके संस्कारों को कल्याणक नहीं कह सकते । महावीर के गर्भ तथा जन्म के विषय में अन्य प्रमाण इस प्रकार है -
'सुरमहिदोच्चुदकप्ये भोगं दिव्वाणुमागमणुमृदो । पुप्फु तरणामादो विमाणदो जो चुदो संतो ॥' बाहत्तरिवासाणिय थोवविहीणाणि लखपरमाऊ।
आसाद जोण्हपवखे छटीए जोणिमुवयादो॥ इत्यादि अर्थात् - जो देवों के द्वारा पूजा जाता था। जिसने अच्युत नामक 16वें स्वर्ग में दिव्यभोगों को भोगा। ऐसे महावीर का जीव बहत्तरवर्ष की आयु लेकर, पुष्पोत्तर विमान से चयकर, आषाढ़ शुक्ला षष्ठी के दिन कुण्डलपुर नगर के स्वामी क्षत्रिय नाथवंशी सिद्धार्थ के घर, सेकड़ों देवियों से सेवित त्रिशलादेवी के गर्भ में आया । वहाँ नवमाह आठ दिन रहकर चैत्रशुक्ला त्रयोदशी की रात्रि में उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में महावीर का जन्म हुआ। (जैन धर्म पृ. - 21-22)।
तीर्थकर महावीर जन्मकाल से ही पूर्व संस्कार के कारण मतिज्ञान (Sensuous kowledge) क्षुतज्ञान (Scripturel knowledge), अवधि (lairuoyant knowledge), ज्ञान इन तीन ज्ञान के धारी थे स्वयंबुद्ध होने से उनको किसी गुरु (शिक्षक) eacher से विद्याभ्यास करने की आवश्यकता नहीं थी। उनका स्वभावत: सुन्दर सुगन्धित शरीर, हितमित प्रियवाणी, सतुल्यबल, शरीर में 1008 शुभ चिन्ह और सौम्य आकृति आदि 10 विशेषता दिखाई देती थी।
तीर्थकर वीर के जन्मकल्याणक के प्रभाव से भूतल का, प्रकृति का, देवसमाज एवं मानवसमाज का वातावरण हर्षमय तथा विकासमय हो गया था। चैत्र शुक्ला चतुर्दशी को प्रात: अमर समाज द्वारा मेरू गिरी
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