________________
कृतित्व/हिन्दी
वैदिक ग्रन्थों में प्राणियों के बलिदान का बहिष्कार -
जैन दर्शन में हिंसा को दीर्घ पाप कहा गया है। किसी भी धार्मिक क्रिया के निमित्त मनुष्य पशु पक्षी आदि प्राणियों का बलिदान करना संकल्पी हिंसा कहा गया है अत: बलिदान भी महापाप है । न केवल जैनग्रन्थों में बलिदान को हिंसा पाप कहा गया है, किन्तु वैदिक ग्रन्थों में भी बलिदान को हिंसा पाप दर्शाकर उसका बहिष्कार किया गया है वैदिक ग्रन्थों के कुछ प्रमाण निम्नलिखित है -
(1)
(2)
(3)
(4)
(5)
(6)
(7)
(9)
(10)
T
कल्पद्रुमावलि - पद्मोत्तर खण्ड अध्याय 104-105 में - श्रीपार्वती ने श्री शिव जी से कहा हे महाराज ! मनुष्य पशुओं को मारकर उनके मांस और रक्त से मेरी और आप की पूजा करता है वह सूर्य चंद्र रहने तक नरक में वास करेगा ।
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ
मनुस्मृति के पञ्चम अध्याय में महाराजा मनु का कथन है कि प्राणियों की हिंसा किये बिना मांस की उत्पत्ति नहीं और प्राणियों का वध स्वर्ग सुख देने वाला नहीं ।
सांख्य तत्त्व कोमुदी - जब एक मांस के छोड़ने से शुद्ध सौयज्ञों का फल मिल जाता है तो म छोड़कर क्यों न उस फल को प्राप्त किया जायें ।
श्रीमद् भागवत - स्कंध 4 अध्याय 25 - महर्षि श्रीनारद जी ने नृप प्राचीन वह से कहा - राजन् ! तुमने यज्ञ में निर्दयतापूर्वक जिन सहस्रों पशुओं की बलि दी है वे सब तुम्हारे द्वारा प्राप्त हुई पीड़ाओं की स्मृति रखते हुए बदला लेने के लिए तुम्हारी वाट देख रहे हैं।
महर्षि श्री व्यास जी - जो प्राणियों के वध से धर्म चाहता है वह कालसर्प के मुखरूपी गुफा से अमृत की वर्षा को चाहता है ।
महाभारत - अश्वमेधपर्व अध्याय 91
नहीं है ।
(8)
महाभारत शान्ति पर्व - बड़े से बड़े दान का फल कुछ काल में क्षीण हो जाता है किन्तु भयभीत को • दिये हुए अभयदान का फल कभी क्षीण नहीं होता ।
यज्ञ में पशुवध करने की विधि इष्ट अर्थात् वेद निहित
महाभारत शान्तिपर्व अध्याय 335 - भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर से कहा- ऋषियों ने अपना पक्ष प्रकट किया कि यज्ञ में बीज आदि से होम करना चाहिये । क्योंकि वह वैदिक श्रुति अज शब्द से बीज अर्थ को ही ग्रहण करती है, बकरा नहीं ।
पद्मपुराण - अध्याय 280 श्लोक 95 - यज्ञ पिशाच और मद्य मांस से प्रिय देवताओं का पूजन नहीं करना चाहिए ।
Jain Education International
वाराह पुराण - अध्याय 132 श्लोक 9 - मनुष्य, गौ, भैंस, बकरा, आदि, सब प्रकार के अण्डज (पक्षी), उद्भिज्ज (पृथ्वी को फाड़कर निकलते हुए पौधे), वनस्पति आदि, तथा पसीने से उत्पन्न जीवों की जो पुरुष हिंसा नहीं करते हैं वे ही शुद्धात्मा और दयापरायण सर्वोत्तम हैं ।
168
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org