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व्यक्तित्व
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ सागर के सूर्य की सुखद स्मृति
महाकवि योगेन्द्र दिवाकर, सतना म.प्र. हे विशुद्धात्मन् ! सर्वज्ञता की ओर जो गये उनकी सुखद स्मृति, कृतज्ञता का आदर्श प्रस्तुत करती हुई शाश्वत ही होती है। ज्योतिपुंज डॉ. पं. दयाचंद जी साहित्याचार्य की अप्रतिम स्मृति को प्रणाम करते हुए हम आत्मा से गदगद होते है क्योंकि वे पर्याप्त प्रबुद्ध प्राचार्य होकर भी अति भोले भाले महामानव थे जो मूक दृष्टा साहित्य मनीषी के रूप में सागर के सुप्रसिद्ध चिंतक व सरस्वती के चरणों में समर्पित थे महामनस्वी होकर भी शांत स्वर में कहते थे कि -
सम्पूर्ण विश्व में शिक्षा से ही सदाचार ।
शिक्षा ही खोले अंतरंग के सत्यद्वार । धराधाम के विद्वत्जनों में ऐसे महान आदर्श शिक्षक डॉ. दयाचंद जैन वास्तव में सागर के सूर्य थे। हमने सूर्य का अभिनंदन पहले नहीं किया (उनके जीवन काल में) अब ‘साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ' नाम से सार्थक स्मृति ग्रन्थ प्रकाशित कर रहे हैं शायद भगवान के ज्ञान में ऐसा ही सुयोग सम्भाव्य होना था । महाकवि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का दोहा -
उपादान की योग्यता, निमित्त की भी छाप ।
स्फटिक मणि में लालिमा, गुलाब बिन ना आप || इस आदर्श ग्रन्थ के प्रकाशन में सारी शंकाओं का समाधान करना है। सही बात तो यह कि पंडित जी ने सागर में रहकर सागर का नाम अपने व्यक्तित्व और कृतित्व से ऊँचा किया है, इसलिए सागर निवासी भी अपने पंडित जी के प्रति अपनी निश्चय व्यवहार मैत्री का मुखबंध दे रहे है जिसकी -
स्याही काली, पीली, नीली. हरी लाल है कई रंग की। किन्तु आत्मा बिना रंग की, और अमूर्तिक बिना अंग की।
शब्दातीत उपशांत आत्मा, ज्योतिर्मय जो सदा अनूठी।
जिसके प्रति, विचार सूत्र है , जो अखण्ड मुक्तिप्रद होती॥ ऐसी पंडित जी की महान आत्मा का मंगल गान कौन अक्षर पुरुष नहीं करेगा। हम तो सागर के सूर्य से कई बार मिले है। हमने देखा है उनका सादा जीवन, उच्च विचार मोराजी के प्रांगण में उनकी स्मृतियों का शाश्वत आज भी जीवंत है सच तो ये है -
सागर देखता रहा और वे सागर के सूर्य बन गये। दर्शन ज्ञान आचरणमयी ऊर्जा लिए अपूर्व बन गये ॥
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