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व्यक्तित्व
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ संस्मरण में पंडित जी
पं. राजेन्द्र कुमार जैन, शाहपुर जब हम कक्षा पांचवी पढ़ते थे। हमारे बब्बा जी श्री भगवान दास जी भायजी के पांचों पुत्र श्री माणिकचंद्र जी, श्री श्रुतसागरजी, श्री दयाचंद्र जी, श्री धरमचंद्र जी एवं श्री अमर चंद्र जी शाहपुर में जन्में इनमें श्री माणिकचंद्र जी, श्री श्रुतसागर , श्री दयाचंद्र जी बाहर सर्विस करते थे। गर्मी की छट्टियों में तीनों भाई अपने पिताजी के पास आते थे। फिर होती थी उनमें धर्म चर्चा । सुबह भोजन के पश्चात् सभी भाई इकट्ठा एक हाल में बैठ जाते थे। श्री पंडित माणिकचंद्र सभी को पान लगाकर देते जाते थे। उनकी आपस में घंटों संस्कृत में चर्चा चलती रहती थी। मैं वहां बैठकर पान खाने के लालच में बैठा रहता और उनके संस्कृत के वार्तालाप को सुनता रहता था। उनके संस्कृत का परिसंवाद और मधुर हास्य आज भी याद आता है।
___ पूज्य भगवानदास जी भायजी उत्कृष्ट अध्यात्म वेत्ता के साथ एक अच्छे संगीतकार भी थे। वे अपने पुत्रों में पंडित धर्मचंद्र जी एवं श्री अमरचंद्र जी को गायन वादन सिखाते हुए देखा सुना है उन्होंने अपने नातियों एवं श्री भानू कुमार आदि को हारमोनियम सिखाते हुए देखा । तब मैं वहां बैठकर देखता सुनता और जब भी मौका मिलता हारमोनियम बजाता। बब्बा जी के आते ही भाग जाता। तीनों बड़े ताऊ बाहर से आते तब शिक्षा की गतिविधियां बढ़ जाती थी। तब गमिर्यो की छुट्टियों का समय कैसे बीत जाता था पता ही नही चलता था । पूज्य भगवान दास जी भायजी के स्वर्गवास के बाद अनेक वर्षो तक सभी ताऊ जी आते रहे। धीर धीरे उनकी व्यस्ततायें बढ़ती गयी धारा प्रवाह आनंद घटता चला गया। आज हमारे बीच हमारे परिवार के पांच पांडवों के नाम से विख्यात पंडितों में से आज चार पांडव हमारे बीच नहीं है केवल आखिरी स्तंभ पंडित अमर चंद्र जी हमारे परिवार एवं संपूर्ण समाज के मार्गदर्शक के रूप में हमारे बीच विद्यमान है वे निरोग रहकर अपना आशीष देते रहे।
मेरे जीवन के प्रकाशक पंडित जी
सुदीप कुमार, सगरा जब से मैंने श्री गणेश दिग. जैन संस्कृत महाविद्यालय में अध्ययन के लिये प्रवेश किया था तब से पंडित जी का मेरे ऊपर बहुत वात्सल्य था, जीवन में कोई शिक्षा देते थे तो बहुत समझा समझाकर बताते थे कि ये विद्यार्थी भविष्य में कभी इन बातों को भूल न जायें तथा उन नैतिक व धार्मिक बातों को हमारे अन्दर प्रवेश करा देते थे। कहीं भी दशलक्षण पर्व आदि में बाहर जाते तो हमें साथ ले जाते थे और उपदेश देने की
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