________________
व्यक्तित्व
ज्ञान और वात्सल्य के समुन्दर थे पूज्य पंडित जी
पू. पण्डित जी का अंतिम शिष्य राजकुमार शास्त्री, प्रिन्स (एम.ए.), जबलपुर
पूज्य पंडित श्री डॉ. दयाचंद जी साहित्याचार्य ज्ञान और वात्सल्य भाव के धनी थे । पूज्य पंडित जी की याद हमारे अंतरंग में आती है तो उनके जीवन की सचित्र झलकियाँ अंतरंग में तैरने लगती है।
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ
हम पूज्य पंडित जी के अंतिम विद्यार्थी रहे है। अंतिम अवस्था में भी पूज्य पंडित जी की कर्तव्य परायणता और ज्ञान पिपासा हमारे जीवन के लिए एक महत्वपूर्ण शिक्षा देती है । पूज्य पंडित जी अपनी अंतिम अवस्था में भी हम लोगों को पढ़ाने के लिए अपने समय पर आते थे । तथा उनकी पिपासा इतनी अधिक थी कि जब पूज्य पंडित जी पढ़ाने में असमर्थ हुए तब हम लोगों से कहते थे कि आप लोग पढ़कर सुनाओ जिससे मेरा स्वाध्याय हो जायेगा | उनका ज्ञान इतना प्रबल था कि हम लोगों के पाठ में भी वे गलतियाँ निकालकर मौखिक बता देते थे। पूज्य पंडित जी का वात्सल्य छात्रों के प्रति बहुत अधिक था जब हम लोग मिलते थे तो बड़े ही प्रेम से हम लोगों को समझाते थे । वे कहते थे कि मैं आपके पिता के समान हूँ तथा वात्सल्य के रूप में कहा जाये तो पूज्य पंडित जी पूज्य वर्णी जी की प्रतिमूर्ति थे ।
पूज्य पंडित जी जीवन भर धर्म के प्रति सजग रहे भगवान की पूजन करना उनके लिए एक महत्वपूर्ण कर्तव्य था तथा नियम पालन में वे हमेशा सजग रहते थे। श्रावक के छः आवश्यकों को वे हमेशा पालन करते थे। वे इस प्रकार है :
देव पूजा गुरु पास्ति स्वाध्याय: संयमः तपः । दानंचेति गृहस्थाणां, षट् कर्माणि दिने दिने ||
अंतत: : पूज्य पंडित जी के जीवन चरित्र पर प्रकाश डाला जावें तो उनका सारा जीवन एक आदर्श जीवन रहा है । उन्होंने अपने जीवन में “सादा जीवन उच्च विचार" वाली इस सुक्ती को चरितार्थ किया | उनका जीवन एक आदर्श व्यक्तित्व की शिक्षा देता है ।
Jain Education International
पूज्य पंडितजी के जीवन के बारे में जितना वर्णन किया जावें उतना ही कम है। किसी ने कहा है कि
सात समुन्दर की मसि करो, लेखन सब बन राई ।
धरती सब कागद करो, गुरुगुण लिखा ना जाई ॥
तथा अंत में श्री पं. दयाचंद जी नहीं है पर याद शेष चन्द्रमा की तरह मंद-मंद मधुर मधुर ज्ञान कलाएँ बिखेरती ।
140
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org