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व्यक्तित्व
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ मेरे जीवन के आदर्श पूज्य पिता जी
ब्र. किरण जैन, प्रबंध संपादिका
स्मृति ग्रंथ, वर्णी भवन मोराजी सागर प्रत्येक व्यक्ति का जीवन एक खुली किताब है । उस किताब को पढ़कर हमें अपने जीवन को किस रूप में ढालना है यह स्वयं के ऊपर निर्भर करता है।
हमारे पिताजी ने अपने जीवन को एक ऐसे सिक्के में ढाला था कि कहीं से भी देखों वह सिक्का बड़ा कीमती दिखाई देता था। कहते थे कि जीवन का समय बड़ा कीमती है एक समय भी व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। समय की कीमत करो, समय तुम्हारी कीमत करेगा । अन्यथा जीवन का समय ऐसे ही व्यर्थ चला जायेगा।"सादा जीवन उच्च विचार" वाली कहावत उनके जीवन में चरितार्थ होती थी। हर समय पुस्तक और कलम उनके हाथ में रहती थी।
हमारे पिता श्री का जीवन बड़ा संघर्ष मय रहा है, उस संघर्षमय जीवन में भी समता और शांति उनके चेहरे पर झलकती थी। 2 वर्ष की उम्र में मेरी माँ का देहान्त हो गया था, हमारे पिताजी ने ही हम सभी बहनों का पालन पोषण किया। पिताजी तो हमारे पिता थे ही, वे ही हमारी माँ थी क्योंकि बचपन से ही हमारा पालन पोषण उन्हीं ने किया, और वे ही हमारे गुरु थे, क्योंकि हमारे जीवन को शिक्षित और धर्ममय बनाने में उन्हीं का ही पुरूषार्थ रहा है। इसलिये माँ पिता और गुरू हम उन्हीं को मानते । अकेले होकर भी हम सभी पोंचों बहनों को पढ़ाना लिखाना सर्विस के साथ गृहस्थी का भार संभालना और चारों बहनों को समय पर गृहस्थ जीवन में प्रवेश कराना, सारा संघर्ष अकेले ही सहन करते हुए सहन शीलता के साथ जीवन बिताना यह जीवन की बहुत बड़ी देन है।
पढ़ना लिखना तो उन्हें बहुत रूचिकर लगता था विद्यार्थी जीवन में शिक्षा प्राप्त करने के बाद जब कुछ दिन तक सर्विस नहीं लगी तो घर (शाहपुर) माँ-पिता के पास चले गये । वहाँ एक दिन उनके पिताजी ने कहा कि यदि सर्विस नहीं लगती है तो हम यहाँ किराने की दुकान खुलवा देते है तो हमारे पिताश्री ने कहा नहीं ! हमारी सब पढ़ाई व्यर्थ चली जायेगी और सर्विस करने के लिए अडिग बने रहे। कुछ दिन जबलपुर
और बीना रहकर श्री गणेश दिगम्बर जैन संस्कृत महाविद्यालय सागर में सर्विस के लिए सन् 1950 में प्रविष्ट हये और सन् 2006 जनवरी तक निरंतर अपनी सेवायें देते रहे। बड़ी रूचि और परिश्रम के साथ विद्यार्थियों को पढ़ाते थे। उनके पढ़े हुये विद्यार्थी आज भी उनके परिश्रम की प्रशंसा करते है कि यदि पंडित जी का इतना समर्पण न होता तो हम लोग ऐसे पदों पर न होते | कक्षा में अधिक परिश्रम होने से एक दिन हमसे कहने लगे कि गांवों के अनपढ़ विद्यार्थी यहां पढ़ने आते हैं। उनको इंसान बनाने में बड़ी मेहनत होती है।
पण्डित जी की जीवन झांकी में दीपावली की दीपमालिका के जगमगाते प्रकाश की भाँति जिन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में अपने जीवन काल में अद्वितीय योगदान दिया है ऐसे पंडित जी के जीवन में अध्ययन अध्यापन करना कराना जीवन का अभिन्न अंग सा बन गया था। जिस प्रकार सूर्य और रश्मियाँ, चंद्रमा और
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