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व्यक्तित्व
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ गृहस्थ होने के कारण आपकी दिन चर्या भी साधुओं जैसी थी। आपने सागर विश्वविद्यालय से “जैन पूजा काव्य "में डाक्ट्रेड की उपाधि भी प्राप्त की तथा अर्यिका ज्ञानमती माता जी ने भी आपको “वाग्भारती" से पुरुस्कृत किया । आपको अनेक संस्थाओं के द्वारा अनेक पुरुस्कार प्राप्त हुये । इन सब विशेषताओं से सर्व विदित होताहै कि आप एक उद्भट विद्वान थे।
आपका मरण भी समाधिपूर्वक हुआ, भगवान बाहुबली के मस्तकाभिषेक के वह मंत्र आपके कानों में गूंज रहे थे उस समय आपकी अंतिम सांसे चल रही थीं, मैंने भी उसी समय जाकर आपको देखा कि आपका समाधि मरण हो रहा है। डॉ. पंडित दयाचंद जी साहित्याचार्य को सद्गति ही प्राप्त हुई हो ऐसी मेरी कामना है।
अगाध ज्ञान के भंडार
ब्र. सुषमा दीदी,
वर्णी भवन मोराजी, सागर (म.प्र.) ___परम श्रद्धेय पंडित डॉ. दयाचंद साहित्याचार्य जी समाज के अद्वितीय विद्वान थे। उनके द्वारा दी गई शिक्षा प्राप्त कई विद्वान आज भी मौजूद है। मैं स्वयं उनके द्वारा दी गई शिक्षा को कभी भुला नहीं सकती हूँ। समय की कद्र करने वाले थे। विद्यालयों मे पढ़ते हुए विद्यार्थी को देखकर बड़े प्रसन्न होते थे। वे हमेशा कहते थे आप का भविष्य उज्जवल बने, आप परिश्रम करते रहे, सफलता चरण चूमेगी।
आप बड़े सरल, सहज एवं शांति प्रिय थे हमेशा स्त्रोतों के अर्थ लगाया करते थे। और कहते थे कि बिना अर्थ के पाठ करना व्यर्थ है। अर्थ लगाकर ही पाठ करो । जिससे परिणामों में समता आवें और आत्मा परमात्मा बन सकें ऐसा उपदेश सदैव देते रहे ।
समूचा जीवन सरस्वती आराधना में ही लगाया। आज जैन समाज में अद्वितीय सरस्वती पुत्र का अभाव हो गया है। यह क्षति कभी पूरी नहीं हो सकती है। मैं वीर प्रभु से प्रार्थना करती हूँ कि उनकी आत्मा को अनंत शान्ति एवं मोक्ष गति प्राप्त हो ।
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