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व्यक्तित्व
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ साहित्याचार्य जी, चतुर्थ पं. धर्मचंद जी शास्त्री, पंचम पं. अमरचंद जी शास्त्री है।
पं. दयाचंद साहित्याचार्य जी ने देश एवं समाज को नई जागृति दी है, पं. पन्नालाल जी साहित्याचार्य जी के बाद आप अंतिम समय तक वर्णी भवन मोराजी में प्राचार्य रहे है। सन् 1990 में वृद्धावस्था होते हुए भी सागर विश्वविद्यालय से पीएच.डी. मानद उपाधि प्राप्त की और डॉ. दयाचंद साहित्याचार्य के पद से विभुषित हुए आप संस्कृत एवं धार्मिक विषयों के प्रकाण्ड विद्वान थे उनके पढ़ाये हजारों विद्यार्थी देश विदेश में विभिन्न पदों पर सेवारत है एवं बहुत से विद्यार्थी विद्वान की श्रेणी में आकर प्रवचन एवं अपने पुस्तकों के माध्यम से समाज को नई दिशा दे रहे है।
___ सौभाग्य से विद्यालय में दो पं. दयाचंद जी थे प्रथम प्राचार्य पं. दयाचंद सिद्धांत शास्त्री जो वर्णी जी के शिष्य एवं पंडित पन्नालाल जी साहित्याचार्य के गुरु जो सौभाग्य से हमारे बब्बा जी (दादाजी) दूसरे पं. दयाचंद साहित्याचार्य जो हमारे बब्बाजी के ही शिष्य रहे । हमारे बब्बाजी के रहते वक्त तक हम 17 साल के थे धार्मिक अभिरूचि और ज्ञान सामान्य था। तब हम पं. दयाचंद साहित्याचार्य जी के पास तत्वार्थ सूत्र का स्वाध्याय हम एवं हमारे मित्र मुन्नालाल जी डीलक्स पेट्रोल पंप वालों ने उनके निवास पर लगातार एक वर्ष किया मैंने बचपन में चौधरन बाई पाठशाला में उनके सानिध्य में चौथा भाग तक पढ़ाई की । वह हम लोगों को इतनी आत्मीयता से पढ़ाते थे कि बहुत दोहे तो तुरंत ही कंठस्थ करा देते थे उनकी पढ़ाई में एक नया ओज एवं लालित्व होता था सरलता एवं सहजता कूटकूटकर भरी होती थी, आपने देश के कोने कोने में अपने प्रवचन के माध्यम से जो छाप छोडी है वह अद्वितीय रही. लाखों रुपये का दान संग्रह करके आप वर्णी भवन मोराजी को लाये है, आप अपने अंतिम समय तक विद्वान तैयार करते रहे है, बेटा न होने से पुत्रियों को बेटा जैसा प्यार एवं उत्कृष्ट शिक्षा दिलाई है एवं बड़े बड़े घरों में सम्बंध किये है जो एक विद्वान के लिए असंभव होता है, किन्तु इनकी छोटी पुत्री ब्र. किरण जैन को बचपन से ही
वैराग्य रहा और संसार के बंधन से मुक्त रही एवं आचार्य विमल सागर जी से आजीवन ब्र. व्रत लेकर महिला समाज को ज्ञान एवं स्वाध्याय के माध्यम से नई दिशा दे रही हैं । पंडित जी के अंतिम समय में उनकी सभी बेटियाँ एवं दामाद एवं समाज के गणमान्य एवं बुद्धिजीवी लोग उनकी सल्लेखना में संलग्न रहे, पंडित जी अंतिम समय तक शास्त्र का स्वाध्याय करते एवं सुनते रहे तथा भगवान का नाम लेकर णमोकार मंत्र पढ़ते पढ़ते पूर्ण होश हवास में उन्होंने अपने नश्वर शरीर का त्याग किया, अपने निज निवास वर्णी भवन मोराजी में ही किया। जिस संस्था में बचपन से लेकर वृद्धा अवस्था तक सेवाएँ दी उसी संस्था में देह का विसर्जन करके उत्तम गति को प्राप्त किया । आप अपने अंतिम समय तक समाज को धर्मलाभ देते रहे एवं अपने हाथ से दानपुण्य भी करते थे। वे हमारे विद्यागुरु है, दादा गुरु है, समाज की शान थे, आचार्य श्री विद्यासागर जी के सच्चे भक्त थे उनसे ही कई नियमों को लिया था । सागर समाज उनके द्वारा की गई सेवाओं को भुला नहीं सकता इसलिए उनको देश में विभिन्न विभिन्न समयों पर कई उपाधियों से सम्मानित किया गया है । सागर समाज ने भी उनके रहते हुए वर्णी भवन मोराजी में एक विशेष समारोह के तहत 51,000/- रु. नगदी एवं शाल श्रीफल से सम्मानित किया था उनके विषय में जितना भी लिखा जाये कम है, अस्तु।
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