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________________ व्यक्तित्व साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ मेरे मार्गदर्शक पण्डित जी वीरेन्द्र कुमार शास्त्री, प्रतिष्ठाचार्य परवारपुरा, नागपुर (महाराष्ट्र) आप सागर मण्डलान्तर्गत धार्मिक नगरी शाहपुर के धर्म शिरोमणि श्रावक पं. भगवान दास जी भायजी के पुत्र थे। आपके पाँचों भाई श्रुतपारङ्गत विद्वान थे। आप जैन दर्शन के तत्ववेत्ता एवं देव शास्त्र गुरु पर प्रगाढ़ श्रृद्धा रखते थे। आप श्री गणेश दि. जैन संस्कृत विद्यालय के स्नातक अध्यापक एवं प्राचार्य भी रहे है । पंडित जी वर्णी जी के अनन्य भक्त थे। सरस्वती पुत्र - आप सरस्वती के वरद पुत्र थे , सरस्वती आपके कंठ में विराजमान थी। निर्भीक प्रखरवक्ता - पंडित जी की प्रवचन शैली जन जन को प्रभावित करने वाली थी। आप जिनागम के रहस्य को निर्भीकता से अपनी ओजस्वी वाणी से स्पष्ट करने में सिद्ध हस्त थे। विद्यावारिधि - आपने अपने यशस्वी पिता से जैनागम के गूढ रहस्यों को ज्ञातकर जनमानस को उसका ज्ञान वितरित कर लाभान्वित किया था। विद्वत्ता की खान - आप गंभीर शास्त्रवेत्ता, पुरानी पीढ़ी के आगम सम्मत मनीषी, गंभीर विद्वान थे। गूढ से गूढ विषय को सरल पद्धति से समझाने की कला आपकी विद्वत्ता एवं योग्यता की परिचायक है। कृतज्ञता ज्ञापन - पंडित जी के जीवन में कृतज्ञता कूट कूटकर भरी थी। उदाहरण स्वरूप आप 2003 में समाज द्वारा सम्मानपूर्वक सेवानिवृत्त हो गये थे। फिर भी विद्यालय के प्रति वे निष्ठावान एवं कृतज्ञ थे अत: उन्होंने जीवन के अंतिम क्षणों (जनवरी 2006 तक) नि:शुल्क शिक्षण कार्य कर महत्वपूर्ण सेवा की है। आपने विद्यालय में अनेक पदों को सुशोभित करते हुए, आपके द्वारा प्रशिक्षित विद्यार्थीगण भारत वर्ष के कौने कौन में जैन शासन की महती धर्म प्रभावना कर रहे है वे सभी विद्यार्थी आपके प्रति कृतज्ञता को शब्दों में व्यक्त करने में असमर्थ है। आप स्वर्गस्थ होकर कहीं भी विराजमान रहें लेकिन आपकी स्मृतियाँ सभी विद्यार्थी वर्ग को हमेशा स्मरणीय रहेंगी। हम सभी विद्यार्थी आपका गुणानुवाद करने में चिरकाल तक समर्थ नहीं है। मैं पंडित जी के प्रति कृतज्ञ हूँ जिन्होंने मेरे जीवन को एक फुलवारी की तरह संवारा है और मुझे विद्यालय में अपने साथ अध्यापन कार्य में रखकर सहयोग प्रदान किया है। तथा आज मैं जिस ऊँचाई पर हूँ, आदरणीय पंडित जी की देन है और मैं चिरकाल तक पंडित जी का ऋणी रहूँगा । मैं पंडित जी के चरणों में कोटि कोटि वंदन करता हुआ अपनी विनयांजलि समार्पित करता हूँ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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