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व्यक्तित्व
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ गुरु के प्रति कृतज्ञता
प्रकाश शास्त्री एम.कॉम,
वर्धमान कालोनी, सागर (म.प्र.) आदरणीय पंडित जी श्री दयाचंद्र जी साहित्याचार्य जी के बारे में कुछ कहना मतलब सूर्य को दीपक दिखाने के बराबर होगा। वर्ष 1976 में जब में ग्राम सागौनी उमरिया जिला - सागर से श्री गणेश दि. जैन संस्कृत महाविद्यालय सागर में अध्ययन हेतु आया था। उसके पूर्व उक्त विद्यालय के बारे में कोई भी जानकारी नहीं थी। अचानक आना हुआ । तथा एडमीशन होने के पश्चात विद्यालय में आदरणीय पन्ना लाल जी साहित्याचार्य जी, पं. माणिकचंद जी तथा पं. दयाचंद जी आदि विद्वानों का अद्भुत संगम देखने को मिला जहाँ साहित्य, दर्शन, एवं न्यायाचार्य की शिक्षा उक्त विद्वानों द्वारा दी जाती थी | समय बीतते देर नहीं लगती एक समय ऐसा भी आया जब मुझे भी उक्त विद्वानों के द्वारा प्रथमा उत्तर मध्यमा एवं शास्त्री की शिक्षा दी गई। आदरणीय पंडित जी श्री दयाचंद साहित्याचार्य “यथा नाम तथा गुण" की सूक्ति पर खरे उतरते थे। हम लोगों को पंडित जी द्वारा प्रातः काल की शुभ बेला में 4:30 बजे से अध्यापन कार्य करवाते थे । तथा सायं 5 बजे से पुन: अध्यापन कार्य करवाते एवं बड़े ही सुन्दर ढंग से समझाते तथा लिखवाते उनका व्यक्तित्व अद्भुत था पंडित जी कभी कभी गुस्सा होते किन्तु अगले ही पल बड़े प्रेम से कहते जो समझ में न आये वह पूछ लो। इस तरह से काफी समय हम लोगों को पंडित जी के सानिध्य में अध्ययन करने का अवसर प्राप्त हुआ कई बार पंडित जी के साथ पर्युषण पर्व में बाहर जाने का भी अवसर प्राप्त हुआ वहाँ पर भी पंडित जी के द्वारा बताया जाता था कि समाज में कैसे प्रवचन देनाहै पंडित जी हम लोगों को छात्रहितकारिणी सभा द्वारा बोलने एवं लिखने के बारे में बताते थे। जो बोलने से डरते उन्हें बताते थे कि कैसे और क्या बोलना। हम जब विश्वविद्यालय सागर में एम.कॉम तथा विद्यालय में शास्त्री की पढ़ाई कर रहे थे उसी समय हमने मिनी पी.एस.सी. की परीक्षा दी उसका काफी समय पश्चात परीक्षाफल आया किन्तु उस समय हमने ध्यान नहीं दिया सोचा अभी तो पढ़ रहे है आगे देखा जायेगा कि अचानक पंडित जी एक नियुक्ति पत्र लिये मुझसे कहने लगे कि प्रकाश चंद देखो यह किसका है मैंने देखा रोल नं. याद नहीं था और इस नियुक्ति पत्र पर नाम नहीं है तो मैंने पंडित जी से कहा कि मैं देखकर बताता हूँ अपने साथियों से पूछा तथा उसके पश्चात मैंने अपना रोल नं. पंडित जी को बताया। तो वह नियुक्ति पत्र मेरा निकला, वह क्षण मेरे जीवन का सुनहरा एवं अद्भुत क्षण था जब मेरे लिए नौकरी का नियुक्ति पत्र पंडित जी के हाथ से प्राप्त हुआ जिन्होंने लगभग आठ वर्ष हमें पढ़ाया था। क्लास में छात्र पहुँचे अथवा नहीं किन्तु पंडित जी समय पर पहुँच जाते थे। समय उनका इंतजार करता किन्तु वे समय का इंतजार नहीं करते थे। किस्मत से मेरी नियुक्ति भी सागर में हो गयी। तथा काफी समय से मैं यही पर पदस्थ हूँ और प्राय: पंडित जी के सम्पर्क में बना रहता था। मैं उदासीन आश्रम जाता तो पंडित जी वहा सुबह 5 बजे से स्वाध्याय करते एवं कराते थे। कई बार हाल चाल पूछते तब बड़ा सुखद लगता था। कि एक महान विद्वान
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