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व्यक्तित्व
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ चुका था इसलिये उनके शरीर को कुंडलपुर न ले जा पाये। करीब 9-9/बजे पंडित जी की नाड़ी क्षीण होने लगी और ब्लडप्रेशर भी क्रमशः कम होने लगा। उपस्थित सभी लोग अपनी अपनी समझ अनुसार उपक्रम किये जा रहे थे पर पंडित जी का ध्यान इन बातों की ओर कतई नहीं गया। उनने तो जो आँखे बंद की तो फिर खोल कर इस संसार की ओर नहीं देखा। तब तक अन्य डाक्टर व महेश विलहरा, गुलाब कक्का जी, सिंघई जी, मंत्री क्रांतकुमार सराफ बगैरह सभी लोग आ गये और जैसे जैसे पंडित जी की खबर बाहर-बाहर फैली, लोग मोराजी की तरफ दौड़ने लगे। शीघ्र ही मोराजी परिसर लोगों की भीड़ से भरने लगा, सभी लोग णमोकार मंत्र पढ़ने लगे हर तरफ उदास आँसुओं बोझिल आँखे दिखने लगीं। ऐसे माहौल में हमारे पंडित जी ने 12-40 बजे अंतिम सांस ली, और वे उस जीवन की मृत्यु के रोग से मुक्त हो गये। पूरे परिसर में हर चेहरे-चेहरे पर आँसुओ की बरसात होने लगी। उनके दिवंगत चरणों में श्रद्धासुमन समर्पित उन जैसा पंडित मरण सभी का हो, इसी विनत भावना के साथ।
दीप्तिमान नक्षत्र
कुन्दन लाल जैन
आदिवासी क्षेत्र अधीक्षक, रायसेन म.प्र. जैसे आकाश में नक्षत्र अपनी दीप्ति फैलाते है अर्थात् अपनी कांति से सुशोभित होते है, वैसे ही पंडित जी अर्थात् मेरे श्वसुर साहब अपनी कीर्ति से अर्थात् अपने व्यक्तित्व से सुशोभित थे। उनका अंतरंग दर्पण जैसा.स्वच्छ था उनके अंदर में छल - कपट जैसे कोई विकार नहीं थे। उनका व्यक्तित्व अपनी ज्ञान गरिमा से सुशोभित था और साथ में परिणामों की सरलता उनके व्यक्तित्व में चार चांद लगा देती थी। आज के समय में ऐसी सहजता होना बहुत दुर्लभ है। मैंने आज तक उनकों श्वसुर के रूप में कभी नहीं देखा, हमारी दृष्टि मैं तो वे एक महान विद्वान थे उसी विद्वता की दृष्टि से मैने उनको देखा है । दुनियां में अनेकों घर में धन-सम्पत्ति अनेक प्रकार का वैभव, सभी परिवार संबंधीजन देखने को तो मिल जाते हैं, परन्तु ऐसी महान व्यक्तित्व वाली धर्म प्रतिभा सम्पन्न मानव मूर्ति का मिलना बहुत दुर्लभ था वे हमारे श्वसुर नहीं जीवन की एक निधि थे। उनके दिवंगत होने पर हमारे हृदय में जो दुख हुआ है उसका वर्णन हम लेखनी से नहीं कर सकते, बस यही एक कामना है कि वह महान आत्मा भव भव में सद्गति को प्राप्त होकर अंत में मोक्ष को प्राप्त करे।
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