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व्यक्तित्व
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ आया है। आपको पुरस्कार मिला है और मुझे बेहद खुशी।" ऐसा अपनापन और वात्सल्य पंडित जी से मुझे मिला।
पंडित जी ने शाहपुर के मंदिर जी में बिराजमान करने के लिए एक चांदी की पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा जी प्रतिष्ठित करायी थी जिन्हें लेकर मैं पंडित जी व अन्य लोगों के साथ शाहपुर गया था तब भी मैंने पंडित जी को सारे रास्ते भर मंत्र जपते हुये देखा । भगवान की अगवानी के लिये पूरा शाहपुर गाँव के बारह आया हुआ था । भव्य शोभायात्रा के साथ भगवान मंदिर जी पहुँचे । अपरान्ह में प्रतिमा जी के अभिषेक के बाद विधान हुआ। शाम को पंडित जी ने मुझसे कहा "डॉक्टर साब मेरे जीवन का यह अंतिम कार्य था जो आज पूरा हो गया। अब कोई इच्छा मन में शेष नहीं रही हैं।" ऐसा सुनकर मैं अचरज में डूब गया क्योंकि उस दिन से पूर्व और बाद में आज तक मैंने कभी भी न ऐसा देखा और न ही सुना कि किसी के जीवन के कार्य पूरे हुये हों । कोई अपने मन को इच्छारहित महसूस कर सका हो और दूसरे से कहे कि अब मन में कोई इच्छा शेष नहीं रही। मुझे आगे भी ऐसी उम्मीद नहीं है कि कभी कोई और पंडित जी जैसे शब्द कहेगा कि आज उसके जीवन का अंतिम कार्य पूर्ण हुआ। ऐसा कहना तो केवल पंडित जी जैसे व्यक्तित्व द्वारा ही संभव है वरना तो जीवन पर जीवन बीतते जाते हैं पर व्यक्तियों के कार्यो और इच्छाओं की सूची का अंत नहीं आता । पंडित जी की यह बात सुनकर उस दिन भी मेरी आँखों में आँसू आ गये थे आज उस बात को लिखते हुये भी मेरी आँखें भर आई हैं। मैं सोच रहा हूँ कि मेरे जीवन में भी पंडित जी जैसी समता और शांति की वो घड़ी न जाने कब आयेगी जब मैं भी कहूँ कि बस आज मेरे जीवन का अंतिम कार्य पूर्ण हुआ। मैं पंडित जी के अंतिम समय में उनके पास ही था । प्रात: करीब 7 बजे किरण दीदी ने फोन से मुझे मोराजी बुलाया जहाँ मैंने देखा कि पंडित जी आँखे बंद किये लेटे हैं। न किसी से बोलते हैं और न किसी की सुनते हैं । मैं समझा पंडित जी गंभीर हालत में हैं और शायद मूर्छित अवस्था में है तो मुझे काफी दुख हुआ और मैंने किरण दीदी को कहा भी कि मुझे जैसा अब बुलाया हैं ऐसा रात में या और पहले क्यों नहीं बुलाया? तो सुषमा दीदी बोली चलो अब देखकर बताओ कि पंडित जी की हालत कैसी है ? और क्या करना है ? मैंने पंडित जी की जाँच पर पाया कि उनकी नाड़ी, बी.पी. आदि सब ठीक है, मात्र पंडित जी न जाने क्यों आँखे बंद किये हुये है।
मैंने पंडित जी से 2-4 बार बात की, कुछ कुछ पूछा, उनकी नाड़ी, व्लडप्रेशर आदि उन्हें बताया | उनसे पूछा कि पंडित जी आपको क्या तकलीफ है आप बतायें । आपका शरीर तो स्वस्थ है आप आँखे खोलिये । पर इतने सब के बावजूद भी जब उन्होंने आँखे नहीं खोली तो मुझे आभास होने लगा कि यद्यपि पंडित जी अभी चैतन्य है पर शायद अपना अंत समय निकट जानकर इस संसार से नजर मोड़ चुके हैं। वे अपने सभी परिग्रह त्यागकर सारे मोह के बंधन तोड़ एक अलग ही रास्ते पर पंचम गति की ओर चल पड़े हैं। मैंने तत्क्षण ही सुषमा दीदी से कहा कि दीदी हमें तत्काल ही पंडित जी को आचार्यश्री के पास कुण्डलपुर ले चलना चाहिए। परंतु पंडित जी का मन तो शायद पूर्व से ही बड़े बाबा और छोटे बाबा के चरणों में पहुँच
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