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व्यक्तित्व
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ सिद्धांत, मध्य सिद्धांत कौमुदी (व्याकरण) साहित्य तथा न्याय के ग्रंथ पढ़ाये। मुझे याद है पं. जी ही 5 से 8 बच्चों के समूह की अभिषेक पूजन की ड्यूटी श्री 1008 चन्द्राप्रभुजिनालय में लगाते थे।जो छात्र पूजन अभिषेक में नहीं जाते उन्हें पं. जी दण्डित करते, डांटते थे। पं. जी का स्वभाव जितना ऊपर से गरम था, अंदर से उतने ही सरल निष्कपट थे। पं. जी समाज में बाहर कहीं भी पूजा विधिविधान आदि काम कराते थे तो छात्रों के एक समूह को प्रयोगात्मक ज्ञान हेतु साथ ले जाते थे व सभी विधि समझाते थे।
इनके विद्वान भाईयों का पारिवारिक स्नेह तो देखने लायक था । मुझे याद है कि इनके एक भाई स्व. पं. श्रुत सागर जी कटनी विद्यालय में पढ़ाते थे। जब भी सागर आते मोराजी आते । स्व. पं. जी. स्व. पं. श्रुतसागर को लेकर हमारी कक्षा में अध्ययन करा रहे पं. स्व. श्री माणिकचंद जी के पास आते । एक भाई दूसरे भाई को पूरा सम्मान देते इनकी आपस में मुस्कराकर चर्चा हम लोगों के कौतुहल का विषय होता था- भाईयों में आपस में बहुत स्नेह व वात्सल्य था जो आज के परिवेश में भाई - भाई में देखने को नहीं मिलता।
__ स्व. पं. दयाचंद साहित्याचार्य समय के बहुत पाबंद थे उन्हें अनुशासन बहुत प्रिय था। उनकी कक्षा में देर से जाने से छात्र डरते थे मैं तो उदण्ड था सबसे ज्यादा सजा मुझे ही दी जाती थी। लेकिन पं. जी दण्ड देने के बाद बहुत पश्चाताप करते थे यह अनेकों वार हुआ। उनकी सहृदय की विशालता इसी से परिलक्षित होती है।
___14-15 वर्ष तक मैं पूज्य पं. जी की छत्र छाया में रहा मुझे कभी यह अहसास/ आभास ही नहीं हुआ कि मैं विद्यालय में हूँ, कि घर में । उनके निर्देश पर ही विद्यालय के छात्रों ने जनता हायर सेकेण्डरी स्कूल पुरव्याऊटौरी तथा स्नातक एवं स्नातकोत्तर सागर विश्वविद्यालय से किया ।आज पं. जी के पढ़ाये हजारो छात्र भारत के कोने कोने में रहकर अपनी आजीविका के साथ समाज सेवाकर रहे है । पं. जी ने अपना समस्त जीवन ज्ञानदान में ही समर्पित कर दिया था।
__ एकबार 1982 में स्व. डॉ. पं. पन्नालाल जी साहित्याचार्य एवं स्व. डॉ. पं. दयाचंद जी साहित्याचार्य से छात्रों ने ग्रुप फोटो ग्रूपिंग (उतरवाने) का निवेदन व आग्रह किया। पं. जी द्वय ने कहा भैया व्यर्थ पैसा क्यों व्यय कर रहे हो ? तथा ग्रुपफोटो को मनाकर दिया। पुन: प्रयास व साहस बनाकर द्वय पं. जी के पास गये बहुत आग्रह के बाद समूह फोटो उतरवाई गई। जो आज मेरी यादों की धरोहर है।
स्व. पं. जी को जब यह जानकारी हुई कि मेरी नियुक्ति शिक्षक पद पर श्री पार्श्वनाथ गुरुकुल खुरई में हुई है तो सरस्वती भवन के बाद वाले कमरे में सहयोगी छात्र से मुझे बुलाया (जहाँ पं. कक्षायें लिया करते थे) और गदगद हो आशीर्वाद दिया तथा शिक्षक के पद की गरिमा बनाये रखने का आदेश दिया। कुछ वर्षों बाद 1988-89 शासकीय सेवा में मेरी नियुक्ति विलासपुर में हुई तो मैं खुरई से सागर पं. जी के पास गया व सब कुछ पूछने के बाद पं. जी ने कहा तुम जहाँ कहीं भी जाओ मोराजी विद्यालय को नहीं भूलना और मंगल आशीर्वाद दिया। उन क्षणों को स्मृत कर आँखे भीग गयीं। पं. जी का पुत्रवत स्नेह व ज्ञानपाकर
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