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________________ व्यक्तित्व साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ आपने योग्य बनाया । परिमाणस्वरूप वे विभिन्न उच्च पदों पर कार्यरत रहते हुए आपका सदैव स्मरण करते है । बहुत समय तक अध्यापक के रूप में कार्य करने के बाद आप प्राचार्य पद पर नियुक्त हुए । जिसका विधिवत निर्वाह करते हुए आपने महाविद्यालय को उत्तरोत्तर प्रगति की ओर पहुँचाया आपकी कार्य करने की क्षमता, लगन शीलता एवं समय की पाबंदी अत्यंत प्रशंसनीय तथा अनुकरणीय रही है । आपके प्राचार्यत्व में मुझे भी अध्यापन कार्य करने का सुअवसर मिला आपके कुशल निर्देशन में अध्ययन अध्यापन कार्य सुचारु रूप से चलता था । पंडित जी में प्रमाद रंचमात्र नहीं था उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीव: माँ सरस्वती की उपासना में व्यतीत किया । जीवन के अंतिम चरण में उन्होंने पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की तथा जीवन के अंतिम समय तक वे छात्रों को पढ़ाते रहे । यह एक महत्वपूर्ण बात है। ऐसे मनीषी विद्वान के प्रति मैं अपनी हार्दिव विनयांजलि अर्पित करता हुआ पंडित जी के नाम के अमरत्व की कामना करता हूँ। सरस्वती के निष्पृह उपासक प्रतिष्ठाचार्य पं. वीरेन्द्र कुमार शास्त्री शिक्षक, धर्मालंकार, विलासपुर मुझे अत्यंत प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है कि जिनवाणी के निष्पृह उपासक, सरस्वती के वरदपुत्र, लोकप्रिय व्यक्तित्व, बुंदेलखण्ड गौरव, कर्मठ, यशस्वी, धर्म प्रभावक, बहुआयामी प्रतिभा के धनी, निर्लोभी, आदर्श विद्वान स्व. डॉ. पं. दयाचंद जी साहित्याचार्य जिनकी चिरस्मृति बनाये रखने के लिए अभिनंदन ग्रंथ प्रकाशित किया जा रहा है। 1971 - 72 से 1984 तक मेरे शिक्षाकाल में स्व. पं. जी से असीम अपनापन, वात्सल्य एवं प्रेरक मार्गदर्शन मिला । गुरु शिष्य के भावुकक्षण आज मेरी आँखों में चलचित्र के समान तैर रहे है । ___ मैंने श्री गणेश प्रसाद दिगम्बर जैन संस्कृत महाविद्यालय मोराजी सागर में प्रथमा से लेकर शास्त्री / धर्मालंकार / जैनदर्शनाचार्य आदि की शिक्षा प्राप्त की। पूज्य प्रात: स्मरणीय गणेश प्रसाद जी वर्णी के अनन्य भक्त स्व. पं. दयाचंद सिद्धांतशास्त्री ने बालवोध भाग - 1 तथा पंडित प्रवर राष्ट्रपति पुरुस्कार से सम्मानित स्व. डॉ. पं. पन्नालाल जी साहित्याचार्य ने पुरुषार्थ सिद्धियुपाय, सर्वार्थसिद्धी जीवकांड कर्मकांड एवं नियमसार प्रवचनसार समयसार का अध्यापन कराया। तथा स्व. पं. जी के ज्येष्ठ भ्राता स्व. पं. माणिकचंद जी न्याय काव्यतीर्थ (गोल्डमेडल प्राप्त) ने द्रव्य संग्रह न्यायदीपिका, प्रेमयरत्नमाला एवं अत्यंत क्लिस्ट शास्त्र प्रमेय कमल मार्तण्ड का अध्ययन कराया। उसी परम्परा में स्व. पं. जी ने लघु (99) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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