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व्यक्तित्व
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ किया है। वह अध्ययन मनन करने योग्य है । पंडित जी भी देव दर्शन, देव पूजा, स्वाध्याय बड़ी ही कुशलता से अंतिम समय तक करते रहे । उसका अनुभव भी उनकी इस कृति में सम्मानित है ।
पंडित जी का जैसा नाम, वैसा ही उनका कोमल हृदय था।आपकी धार्मिक, साहित्यिक, सामाजिक गतिविधियाँ समय - समय पर चलती रहती थी। जिसकी छाप अभी भी समाज के पटल पर प्रतिलक्षित देखी जाती है । यही कारण है कि समाज की प्रेरणा के फलस्वरूप, उनका स्मृति ग्रन्थ तैयार हुआ है ।
पंडित जी के स्वर्गवास होने के पूर्व हमें भी उनका सानिध्य मिला ।उनका जिस दिन स्वर्गवास हुआ, उस समय मैं भी उनके समीप था । उनको णमोकार मंत्र का उच्चारण कराया तो उन्होंने मंत्र को स्मरण करने में साथ दिया । अन्त समय तक उनकी चेतना शक्ति जागृत थी तथा उन्होंने इस नश्वर देह को शांति से विदा किया, जो कि उनकी सुगति का द्योतक है।
इस प्रकार पंडित जी ने अपना जीवन धार्मिक शिक्षा के साथ समर्पित किया। इस भरपूर सेवा के लिए सागर समाज यह विद्यालय सदैव ऋणी रहेगा । आप अपने समय के उत्कृष्ट एवं सबसे वयोवृद्ध विद्वान थे। उनका धार्मिक वात्सल्य जीवन हम लोगों के मानस पटल पर साक्षात्कार कराता रहता है । यद्यपि आप हमारे बीच में नहीं है फिर भी आपका आदर्श जीवन, सरल स्वभाव, धार्मिक प्रेरणा अभी भी हम लोगों के मानस पटल पर अंकित है । इन अल्प शब्दों के साथ, पंडित जी के प्रति , हमारा एवं हमारे परिवार का श्रद्धा सुमन समर्पित ।
सागर विद्यालय का जागरूक प्रहरी मनीषी विद्वान पंडित दया चंद्र जी साहित्याचार्य
सिं. जीवन कुमार जैन
बड़ा बाजार, सागर प्रात: स्मरणीय परम पूज्य श्री 105 क्षुल्लक गणेश प्रसाद जी वर्णी की टकसाल में ढले अनेक सिक्कों में से एक सिक्के थे, पंडित दयाचंद्र जी साहित्याचार्य शाहपुर मगरौन जिला सागर निवासी, पिता श्री भगवानदास जी भाई जी जो पंचपरमेष्ठी णमोकार मंत्र को अनेकों धुनों में गाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करते थे । पाँच पुत्रों में से एक सुयोग्य पुत्र थे, "पंडित जी" अपनी पाँच पुत्रियों के कुशल पिता और पंच परमेष्ठी के परम आराधक थे "पंडित जी"।
अपनी लगभग 55 वर्षीय शैक्षणिक सेवाएं देकर पंडित जी ने शिक्षा क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित किया। उपरान्त नि:शुल्क सेवाएं दी विद्यालय को।
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