________________
व्यक्तित्व
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ विद्यालय के प्रमुख प्रवेश द्वार पर पंडित जी का निवास था, सामने पूज्य गणेश प्रसाद वर्णी के स्टेच्यू के निरंतर दर्शन होते थे । दूसरे मंजिल में विराजित भगवान बाहुबली के और तीसरी मंजिल में विराजित भगवान आदिनाथ के पंडित जी परम आराधक जीवन पर्यन्त रहे ।
__वे कुशल अध्यापक प्रवचनकर्ता लेखक और मौलिक ग्रंथ रचनाकार थे । पत्र पत्रिकाओं में समय समय पर अनेक आलेख प्रकाशित होते रहते थे। सागर विश्वविद्यालिय से डाक्टरेट प्राप्त की थी । गणिनी आर्यिका ज्ञानमती जी के तथा 108 मुनि श्री ज्ञान सागर जी के सानिध्य में पुरस्कार प्राप्त हुए । दिल्ली आदि में समाज द्वारा सम्मानित हुए।
वर्ष 1968 में श्वेताम्बर ग्रंथ में उनका एक लेख "मरूधर केशरी' में प्रकाशित हुआ था । वे सरल थे। एक दिन प्रात: काल अपनी डाक स्वयं लेकर (लेटर बॉक्स) पत्र पेटी में डालने जा रहे थे, मार्ग में भेंट हो गई "मैंने कहा पंडित जी प्रात: काल यदि आप शांति निकुंज उदासीन आश्रम पहुंचकर श्रोताओं को किसी ग्रंथ का स्वाध्याय करायें तो हम जैसे कुछ श्रोताओं को जिनवाणी श्रवण का लाभ मिलें।" दूसरे दिन से पंडित जी उतनी दूर पैदल आने जाने लगे और निस्पृह भाव से जिनवाणी का श्रवण कराया। सागर विद्यालय का जागरूक प्रहरी :
विद्यालय के प्रवेश द्वार पर निवास होने से सभी उनसे मिलते जुलते रहते एवं किसी असामाजिक तत्व का प्रवेश न हो पाता था।
समाज द्वारा सौंपे गए दायित्व का जीवन पर्यन्त निर्वाह किया। अन्तिम दिन जब जैन जगत श्रवण बेलगोला विराजित सातिशय उतुंग भगवान बाहुबली का अभिषेक कर रहे थे, उसी पीयूष बेला में पंडित जी ने कुछ अस्वस्थता महसूस की और सागर समाज 11 बजे भगवान बाहुवली का मस्तकाभिषेक कर रही थी तभी वह जागरूक प्रहरी समाज के द्वारा सौंपे गए दायित्व को समाज को सौंप कर दोपहर 12 : 40 पर प्रयाण कर गये । धन्य है वह आत्मा ।
__ उनकी सबसे छोटी पुत्री ब्र. किरण दीदी ने पिता की अंतिम समय तक सेवा की। बह्मचर्य व्रत लेकर पिता के प्रति अपने दायित्व को निभाया । वे यहां हम सबकी श्रद्धा की पात्र हैं उन्हें प्रणाम ।
पंडित जी स्वयं 5 भाई थे, सबसे बड़े भाई पंडित माणिकचंद्र जी दर्शनाचार्य सागर महाविद्यालय में धर्माध्यापक पद पर जीवन पर्यन्त रहे । लोग कहा करते थे कि पंडित माणिकचंद्र जी वर्णी जी की अंगूठी के माणिक हैं, और पंडित पन्ना लाल जी साहित्याचार्य जी वर्णी जी की अंगूठी के पन्ना है। शेष 4 भाईयों में दूसरे नंबर पंडित श्रुतसागर जी, तीसरे नम्बर पर पंडित दयाचंद्र जी और चौथे नंबर पर पंडित धर्मचंद्र जी, पाँचवे नंबर पर लब्ध प्रतिष्ठाचार्य पंडित अमर चंद्र जी प्रतिष्ठारत्न हैं। सभी भाई श्रुताराधक हों, यह दुर्लभ हैं। सभी प्रणम्य हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org