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व्यक्तित्व
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ ऋषभदेव तीर्थंकर विद्वत् महासंघ राष्ट्रीय पुरस्कार द्वारा पू. गणिनी आर्यिका ज्ञानमती माता जी के शुभाशीष से सम्मानित किया गया था, दिनांक 12 फरवरी 2006 श्री 1008 भगवान बाहुबली स्वामी के मस्तकाभिषेक श्रवणबेलगोला में एवं सागर के वर्णी भवन मोराजी में भी महामस्तकाभिषेक चल रहा था । पू. पंडित जी ने सजग स्मरण द्वारा बिस्तर पर पड़े भगवान बाहुबली की अभिषेक कार्यक्रम की ध्वनि सुनते - सुनते णमोकार मंत्र का स्मरण करते करते महाप्रयाण किया । ज्ञान ज्योति परमादरणीय साहित्याचार्य जी सदा जयवंत रहे।
स्व. पं. दयाचंद जी के प्रति श्रद्धा सुमन
नरेन्द्र कुमार चमेलीबाई,
राजा भैया निशी, सागर पंडित जी ने सागर स्थित श्री गणेश दि. जैन संस्कृत महाविद्यालय को प्राध्यापक एवं प्राचार्य के रूप में अमूल्य सेवाओं का लाभ लम्बे समय तक दिया । इतने अधिक समय का लाभ शायद ही किसी शिक्षा विद ने दिया हो । उल्लेखनीय है कि उन्होंने सेवा - निवृत्ति होने के पश्चात् भी विद्यार्थियों को लौकिक शिक्षा के साथ धार्मिक शिक्षा प्रदान करते रहे। वह भी 90 वर्ष की आयु के बाद, जबकि उनकी शारीरिक शक्ति क्षीण हो गई थी, परन्तु उनकी बौद्धिक शक्ति उम्र बढ़ने के साथ - साथ और भी मुखरित होती रही । उनका अध्ययन अनुभव परख था। उनकी पढ़ाने की शैली सरल थी, सुबोध थी। ऐसी ही उनकी प्रवचन की शैली भी थी। हमें उनके प्रवचन सुनने के अवसर लगातार कई वर्षों तक उदासीन आश्रम सागर में प्रात:कालीन स्वाध्याय के समय सौभाग्य से मिले । कठिन से कठिन विषयों को सरल रूप से समझाने की अद्भुत योग्यता उनके पास थी वह अविस्मरणीय है। जब कभी भी सुबह स्वाध्याय करता हूँ . उदासीन आश्रम में तो उनकी याद आती रहती है।
इसके अलावा विद्यार्थियों के मानस पटल को पहचान ने की उनके पास अपूर्व क्षमता थी । वे इस कारण से विद्यालय के अनुशासन और मर्यादाओं के प्रति सचेत रहते थे। इसके फलस्वरूप छात्रगण, आपके प्रति हमेशा श्रद्धावनत् रहे । आपका सानिध्य जिन छात्रों को मिला, वे बड़े ही सौभाग्यशाली रहे और उनका भविष्य उज्ज्वल बना।
पंडित जी ने भगवान की पूजा संबंधी एक अभूतपूर्व शोध किया । फलस्वरूप उन्हें डाक्ट्रेड की उपाधि से सम्मानित किया गया। उनकी पुस्तक में देव पूजा के विधान के बारे में अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करने तथा आत्मज्ञान को किस विधि से प्राप्त किया जाता है उसका उल्लेख बड़ी ही सरल भाषा में
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