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व्यक्तित्व
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ जैन दर्शन के उद्भट विद्वान
पं. सुरेन्द्र कुमार सिंघई
बड़ागाँव टीकमगढ़ (म.प्र.) संयोग में वियोग की, हर्ष में विषाद की पीड़ा छिपी रहती है। जिसका जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु अवश्यंभावी है। जीवन से लेकर मरण तक जीवन एक नदी की तरह होता है, पर वही नदी सार्थक होती है जो सागर में मिलती है। मनुष्य जीवन उसी महामानव का धन्य होता है जो नदी की तरह परोपकार करता हुआ अमरता के सागर में मिलता है। जीवन अमर उन्हीं का बनता है जो जीवन के भव्य प्रसाद पर साधना समाधि का कलशा रोहण करते हैं। श्रद्धेय पं. दयाचंद जी का जीवन ज्ञान की आंच में पका जीवन था, शायद इसीलिए पूर्ण था , और पूर्ण वही होते है, जो पूज्य होते है। संसार सृजन को देखता है और सृजन के अनुसार ही व्यक्ति के व्यक्तित्व का मूल्यांकन करता है। मैं कहूँगा आदरणीय पं. दयाचंद साहित्याचार्य जी सृजन के कारण नहीं असजृन के कारण महान थे। एक व्यक्ति अपने कार्यक्षेत्र में जो कुछ सर्वश्रेष्ठता को पा सकता है। वह सब पंडित जी ने पाया था। पंडित जी किसी भी मुकाम पर अहंकार के रथ पर सवार नहीं हुए । अंहकार का सृजन नहीं किया, विनम्रता उनकी महत्ता की आधारशिला थी। इसी महत्ता के कारण पंडित जी महान थे।
विद्वान किसी वर्ग विशेष के नहीं बल्कि समस्त भारतीय संस्कृति और साहित्य के सर्जक होते हैं। सागर विद्वानों की कर्मभूमि एवं जन्म भूमि रहा है। इसी कड़ी में महाकवि पद्माकर, कामता प्रसाद गुरु, डॉ. हरीसिंह गौर , पूज्य क्षुल्लक 105 श्री गणेश प्रसाद जी वर्णी, डॉ. पन्नालाल जी साहित्याचार्य पं. मुन्नालाल जी रांधेलिया जैसे विद्वानों ने जन्म लेकर सागर को राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलाई है। इसी श्रृंखला में श्रीमान् डॉ. पं. दयाचंद जी एक कड़ी के रूप में रहे । आपने उत्कृष्ट लेखन, विवेचन, टीका एवं संपादन के आधार पर आपने भारतीय साहित्य में जैन दर्शन को विकसित किया। पूज्य श्री वर्णी जी के कृपा पात्र, मानस पुत्र, जैन वाङ्गमय के महान अध्येता तथा जैन विद्याओं के आपदानी, बनकर स्वनाम धन्य किया। साहित्याचार्य जी के व्यक्तित्व का निर्माण वर्णीजी ने किया था । वही अध्यात्म संत उनके मार्गदर्शक रहे और वही उनके जीवनादर्श। पंडित जी का व्यक्तित्व पक्ष जितना वंदनीय प्रेरक और श्लाघनीय रहा है कृतित्व पक्ष भी उतना ही लोकोन्मुखी, कल्याणकारी, प्रगतिशील एवं अनेकांतवादी था। पंडित जी मानवीय पहलू के क्रियाशील, ईमानदार, शिक्षक, प्राचार्य रहे।
डॉ. पं. दयाचंद जी नि:संदेह बीसवीं सदी के बहुश्रुत विद्वान थे। उनके जैनधर्म एवं दर्शन संबंधी अवदान के फलस्वरूप वर्ष 2004 में श्री अतिशय क्षेत्र तिजारा में प. पू. 108 उपाध्याय ज्ञान सागर जी महाराज के सानिध्य में श्रुत संवर्धन पुरस्कार 31000/- की नगद राशि स्मृति चिह्न, शाल, श्रीफल आदि से सम्मानित किया गया। सन 1981 में सागर के सरस्वती पुत्र का भारतीय दिगम्बर जैन श्राविकाश्रम सोलापुर महाराष्ट्र परिषद द्वारा “साहित्य भूषण' की उपाधि से अलंकृत किया था । सन् 2001 में
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