________________
व्यक्तित्व
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ अनुकरणीय ज्ञान साधना के प्रतीक
प्रोफेसर फूलचंद जैन प्रेमी, वाराणसी बुंदेलखण्ड आर्थिक सामाजिक एवं राजनैतिक आदि क्षेत्रों में भले ही पिछड़ा रहा हो, किन्तु आचार तथा ज्ञान के क्षेत्र में सदा अग्रणी रहा हैं। यहाँ एक से बढ़कर एक शास्त्रीय विद्वान हुए हैं तथा धार्मिक आचार की दृष्टि से विशेषकर यहाँ की जैन समाज तो आज भी सम्पूर्ण देश की जैन समाज के लिए आदर्श है । इन्ही ज्ञान और आचार के क्षेत्र में सागर जिले के शाहपुर ग्राम में अपने जन्म से गौरवान्वित करने वाले स्वनाम धन्य पंडित भगवानदास जी भायजी के पाँचों सुपुत्रों ने एक विशेष कीर्तिमान स्थापित किया है। किसी पिता के पाँचों ही सुपुत्र देश के ख्याति प्राप्त विद्वान बने हों ऐसा उदाहरण शायद ही अन्यत्र कहीं हो । यद्यपि इन पाँचों ही विद्वानों से मुझे सहज आत्मीयता पूर्ण स्नेह प्राप्ति का सौभाग्य मिला है, किन्तु इनमें से श्रद्धेय पंडित श्रुतसागर जी तो मेरे साक्षात् गुरू ही रहे है, जिनसे मुझे कटनी के जैन विद्यालय में सन् 1965-66 में न्यायदीपिका तथा अन्य आरम्भिक जैन न्याय शास्त्र के ग्रन्थ पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। एन. पी. वर्तमान में स्मरणीय श्रद्धेय डा. दयाचंद जी साहित्याचार्य मेरे साक्षात् गुरू भले ही न रहे हों किन्तु मेरे मन में इनके प्रति सदा गुरू एवं पिता तुल्य सम्मान काभाव रहा है और आपसे भी सदा मुझे स्नेह प्राप्त होता रहा है।
___ श्रद्धेय पंडित जी का सम्पूर्ण जीवन ज्ञान साधना का एक आदर्श उदाहरण हैं । “सादा जीवन उच्च विचार" की कहावत को चरितार्थ करने वाले पं. जी की ज्ञान साधना की पराकाष्ठा उस समय फलीभूत हुई जब आपने अपनी वृद्धावस्था में पी.एच.डी. जैसी शिक्षा जगत् की सर्वाच्च उपाधि सागर विश्वविद्यालय से प्राप्त की। सागर जिले के ही दलपतपुर गाँव मेरी जन्म भूमि होने के कारण मुझे यहाँ वर्ष में 2-3 बार सागर भी आने का मौका मिलता और यहाँ श्री गणेश दिगम्बर जैन संस्कृत महाविद्यालय से लगाववश पंडित जी से जरूर मिलने जाता । यहीं वर्तमान प्राचार्य पंडित मोतीलाल जी एवं मेरे सहपाठी विद्वान पंडित ज्ञानचंद जी व्याकरणचार्य से भी मिलकर आत्मीय सुख की अनुभूति करता हूँ।
कुछ वर्ष पूर्व एक बड़े आचार्य के ससंघ सानिध्य में मोराजी भवन ग्रीष्मकालीन सिद्धान्त वाचना चल रही थी। अपने गाँव में जाते समय सागर पहुंचने पर जैसे ही यह समाचार ज्ञात हुआ, मैं मोराजी भवन पहुँचा | वाचना प्रारम्भ होने में कुछ देर थी, अत: मैं यहीं श्रद्धेय पंडित जी के आवास पर उनसे मिलने पहुँचा। मैंने देखा कि पंडित जी तत्त्वार्थवार्तिक, सर्वार्थसिद्धि आदि ग्रंथो के पारायण में संलग्न है । मैंने पूछा पंडित जी आप इस वृद्धावस्था में और भीषण गर्मी में इन शास्त्रों का एक परिश्रमी विद्यार्थी की तरह पारायण क्यों कर रहे हैं ? पंडिज जी ने कहा - अभी कुछ देर बाद मुझे एवं बड़े श्रमण के संघ के समक्ष इन शास्त्रों की वाचना प्रस्तुत करना है । अत: कितना ही ज्ञान हो, परीक्षा के पूर्व यदि उन शास्त्रों का पारायण न किया जाए तो मन में संतोष नहीं होता | मैं उनकी इस ज्ञान साधना से अत्यधिक प्रभावित हुआ ।
सन् 2001 में अ.भा. दिगम्बर जैन विद्वत् परिषद् का मुझे अध्यक्ष पद पर मनोनीत किया गया तब
82)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org