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व्यक्तित्व
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ सहज, सरल सादगी पसंद पंडित जी
पं. सुरेन्द्र भारती बुरहानपुर जब भी मैं सागर की ओर देखता हूँ विशाल तालाब के आगे परम श्रद्धेय पंडित जी डॉ. दयाचंद जैन साहित्याचार्य का स्मरण हो जाता है। लगता है कि वे बड़े तालाब के तट पर निवास करते हुए विशाल सागर की तरह धीर, वीर, गम्भीर थे। निगाह नीची, भाल उन्नत, सादगी पसन्द, सहज, सरल और सदैव कर्त्तव्यों के प्रति जागरूकता उनमें दिखाई देती रही-जीवनपर्यन्त । वे अपनी मिसाल आप थे। उन्होंने जो कुछ अर्जित किया था उसे अनेक गुना करके समाज और शिक्षार्थियों को लौटाया । मानों लेकर रखना उन्होंने सीखा ही न था। वे देव शास्त्र गुरू के प्रति परम आस्थावान्, पूज्य गणेश प्रसाद जी वर्णी की छत्रछाया में रहने वाले तथा उन्ही के धर्म कर्म सम्पन्न गुणात्मकता के अनुगामी थे। मैं जब भी सागर जाता था वे सहज भाव से मिलते थे। मेरा उनसे परिचय 20 वर्ष पूर्व हुआ था, जब मैं डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर में वर्तमान पद (सहायक प्राध्यापक हिन्दी विभाग सेवासदन महाविद्यालय बुरहानपुर म.प्र.) हेतु साक्षात्कार के लिए गया था तब उनके कहने पर मेरी मोराजी में ही रहने की व्यवस्था की गयी थी लगता है यह आतिथ्य देना उनके स्वभाव में था । उन्होंने अपने शोधप्रबंध के माध्यम से जिनभक्ति साहित्य का खूब आलोड़न किया ओर मोती समाज विद्वानों को प्रदान किए। वे अ.भा. दिगम्बर जैन विद्वत्परिषद् के विद्वान् सदस्यों में अग्रकोटि के थे। उनके निधन से भले ही समाज ने, परिवार ने उन्हें खो दिया हो परन्तु वे विद्वज्जगत में अपनी साहित्यिक शैक्षणिक क्षेत्र में दी गयी सेवाओं के लिए अजर अमर रहेगें । मैं उनके सम्मान में प्रकाशित स्मृति ग्रंथ हेतु समाज के प्रति कृतज्ञ हूँ जिसने विद्वत्ता के गौरव को मान देकर स्वयं को गौरवान्वित किया है। आदरणीय पंडित जी की सुयोग्य सुपुत्री कुमारी किरण संयमित जीवन जी रही है, यह देखकर हर्ष होता है कि पिता के संस्कार पुत्री में जीवन्त हो रहे हैं।
मेरी विनम्र श्रद्धांजली पूज्य पंडित जी की आत्मा के प्रति, यश:काम के प्रति है।
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